चम्बल तट के प्रतिहार
Pratihar of Chambal, Sindh and Sondhiya - चम्बल तट, सिंध व सोंधिया प्रतिहार
Pratihar of Chambal, Sindh and Sondhiya |
चम्बल तट के प्रतिहार
ग्वालियर के प्रतिहार शासक विजयपाल के दूसरे पुत्र गिरमेरशाह ने वि.सं. 1132 में चम्बल तट के क्षेत्र को मेवों से विजय करके उस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। उसका पुत्र शम्भरशाह वि.सं. 1148 में तथा पौत्र उदहशाह वि.सं. 1167 में वहाँ के राजा हुए। ये ग्वालियर राज्य के सामंत थे। इनके बाद रुद्रशाह तथा राव कुंवरराज यहां के अधिपति हुए। राव कुंवरराज का बड़ा पुत्र खीरसमंद वि.सं. 1257 में गद्दी पर बैठा तथा छोटे पुत्र लक्ष्मण को मदनपुर की जागीर मिली। खीरसमंद के बाद लोधीशाह यहां का शासक हुआ। इन्होंने लुधावली बसाई थी। इसके छोटे भाई रायसिंह ने रायपुर ग्राम बसाया, जिनके वंशज उटशाना में हैं। बादशाह औरंगजेब ने ईस्वी 1688 में फतेहाबाद जिला-आगरा में प्रतिहारों को मुसलमान बना दिया जो मिल्कजादे पड़िहार कहलाए।
राव लोधीशाह के पश्चात् उनके पुत्र कल्याणजू शासक बने। उनका भाई राव हम्मीरजू था जो बड़ौस और उमरणे में रहा। इनके बाद क्रमशः मागदेव, रायदेव आदि प्रतिहार शासक हुए। रायदेव ने राजौरा बसाया। इनके वंशज उत्तरप्रदेश में आगरा जिले के फरहौल, गुर्जा कमले, मढ़ीवायदपुर, काकर खेड़ा, पिडौरा तथा अरनौट और उसके आस-पास के गांवों में बसते हैं।
सिंध के प्रतिहार
सिंध में निवास के कारण ही यह सिंध प्रतिहार कहलाते हैं। जैसलमेर के भाटी क्षत्रियों ने इन्हें जाम की पदवी से विभूषित किया था। वर्तमान में ये राजस्थान में कहीं कहीं तथा सिंध (पाकिस्तान) और जूनागढ़ (गुजरात) आदि स्थानों पर निवास करते हैं।
सोंधिया प्रतिहार
प्रतिहार शासक लुल्लुर के सातवें वंशज दीपसिंह ने सिंधु नदी के तट पर शत्रु को परास्त करके विजय हासिल की थी, इसीलिये इनके वंशज सोंधिया प्रतिहार कहलाने लगे। वर्तमान में मध्यप्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र तथा राजस्थान के झालावाड़ में निवास करते हैं।
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