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ठाकुर लालसिंह जी मण्ड्रेला (शेखावत)
ठाकुर लालसिंह जी मन्ड्रेला (शेखावत)
_लालसिंह जी का जीवन परिचय_ :---
रण में जाता पाछा आता मंगल गाती नार।
जीत्या जणो मंगल मरणो, क्षात्र धर्म रो सार।।
लालसिंह जी मन्ड्रेला का शौर्यगाथा :---
पचादा एक मुस्लिम जाति थी। जो इधर-उधर उपद्रव करने, गाय-बैल रखने व चराने का कार्य किया करती थी। पचादो की गाय-बैल जहां से भी गुजरती, वहां आस-पास की गाय-बैलों को भी अपने साथ जबरन ले जाया करती थी। इस प्रकार यह पचादे मुस्लिम चोरी व जुरायम पेशा कार्य किया करते थे। यह जंगलों में ही ज्यादा रहते थे। संवत् 1852 की बात है कि यह पचादे गाय चराते हुए, मन्ड्रेला ठिकाने के पास से गुजरे तो इन पचादो ने लालसिंह जी की बैलों की जोड़ी और मन्ड्रेला ठिकाने के अधीनस्थ गांव नारनोद व अलीपुर के किसानों की गाय व बैल भी घेरकर ले गये। जब किसानों और सेवकों ने लालसिंह जी के पास आकर फरियाद की कि पचादा जाति के मुस्लिम बणजारों ने, मन्ड्रेला ठिकाने और अन्य गांवों की गाय घेरकर ले गए हैं, तब लालसिंह जी शेखावत अपने भाई कानसिंह और सोलह अन्य वीरों के साथ गाय-बैल छुड़वाने के लिए गए।
ठीमाऊ गांव की ढाब पर पचादे रूके हुए थे। वहां जाकर लालसिंह जी ने उन्हें ललकारा। तब पचादो ने लालसिंह जी से कहा कि आपकी बैलों की जोड़ी आ गई है तो आप उन्हें लेकर पधारें, लेकिन आप दुसरी गायों व बैलों को छुड़ाने की जिद ना करें। लेकिन लालसिंह जी एक प्रजा वत्सल ठाकुर साहब थे, और उन्होंने पचादो को समस्त गायों व बैलों को छोड़ने का आदेश दिया। परन्तु पचादे तैयार नहीं हुए। लालसिंह जी ने आदेश का पालना ना होते देखकर मार-काट का आदेश दे दिया। पचादे मौत के घाट उतारे जा रहे थे। इतने में पचादो के अन्य साथी व कुछ समय के पश्चात पचादो की पुरी कटक(पूरी टोली या फौज) ढाब आ पंहुची। यह सब देखकर पचादे भी लड़ने लग गये और पचादे संख्या में अत्यधिक हो गये। इस घमासान युद्ध में लालसिंह जी मन्ड्रेला तथा इनके भाई कानसिंह सहित सोलह वीर ही साथ थे। इधर पचादे सैंकड़ों की संख्या में थे। युद्ध मैदान में लालसिंह व कानसिंह को पचादो ने चारों ओर से घेर लिया था और किसी पचादे ने पीछे से वार कर लालसिंह जी का सर काट दिया।
परन्तु फिर भी लालसिंह जी का धड़ तलवार लेकर शत्रुओं पर कहर बरपा रहा था। लालसिंह जी के भाई कानसिंह वीरगति पा चुके थे। लालसिंह जी के बिना सिर तलवार चलाने के कृत्य से पचादे मारे जा रहे थे। यह सब देखकर पचादे घबराकर जान बचाकर भाग गये। इधर आपकी गायों व बैलों ने अपने घर की तरफ दौड़ लगा दी और मन्ड्रेला आ पहुंचे। शेष बचे सभी शत्रुओं को खत्म कर लालसिंह जी का धड़ शांत हुआ। लालसिंह जी के पार्थिव शरीर को मन्ड्रेला लाकर ठिकाने के श्मशान घाट पर दाह संस्कार किया गया। लालसिंह जी ने वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए प्राणोत्सर्ग किया और जुझार हुए।
कवि तनसिंह जी उक्त पंक्तियां इन पर सही बैठती है :-
*इस अन्तर की यह आवाज सुनो।
कुछ करके मरो या मरके करो।।*
लालसिंह जी बहुत कुछ करके ही मरे और मरने के पश्चात भी गाय, बैल छुड़ाकर ही तलवार को विराम दिया। इसलिए उनका कुल जुझारों में शुमार हुआ। इन पचादो से युद्ध से पहले ही लालसिंह जी के एक मात्र पुत्र रामसिंह थे, जो पूर्व में ही स्वर्गवासी हो चुके थे। इसलिए लालसिंह जी की रानी युवराणी बीकावत ने, लालसिंह के भाई रणजीत सिंह के बड़े पुत्र भगवंतसिंह को गोद ले लिया। भगवंतसिंह के वंशज आज गढ़ चनाणा और गढ़ चोबुरजा में निवास करते हैं। आज भी लालसिंह जी की पूजा अर्चना इनके परिवार वाले करते है तथा लालसिंह जी को होली, दीपावली, दशहरा तथा चांदनी चौदस को जो भी ध्याता है, उसके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं।
मन्ड्रेला में राजपूतों के श्मशान स्थल पर दो छतरियां व एक सती दादीसा चांपावत जी का मंदिर बना हुआ है। इसी मंदिर के आगे घोड़े पर चढ़े जुझार लालसिंह जी की मूर्ति स्थापित कर छोटा सा मंदिर बनवाया हुआ है। इनकी प्रतिमा के एक हाथ में तलवार व दूसरे हाथ में ढाल सुशोभित है।
✍️✍️दैवेन्द्र सिंह गौड़ ✍️✍️ (@kartabbanka_rifles)
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