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वीर बुंदेला राजपूतों का संपूर्ण इतिहास - Bundela Rajput Full History
बुंदेला राजपूतों का संपूर्ण इतिहास |
पंचमसिंह ने मध्यप्रदेश में अपना राज्य जमाया। इसके पुत्र वीरभद्र ने अफ़गान सरदार तातारखां को पराजित किया। उसने अपनी राजधानी महोबा बनाई। वृद्धावस्था में वीरभद्र ने अपना राज्य अपने पुत्र करणपाल को सौंपा और स्वयं ने वानप्रस्थ ग्रहण किया। करणपाल बुंदेला के बाद अर्जुनपाल व सोहनपाल हुए। सोहनपाल बुंदेला ने अपनी राजधानी गढ़ कुंडार को बनाई। सोहनपाल बुंदेला के बाद सहजइन्द्र, नानकदेव, पृथ्वीराज, रामचन्द्र, मेदिनीराम, अर्जुनदेव, मलखन व रूद्रप्रताप हुए। रूद्रप्रताप बुंदेला ने वैशाली सुदि 13 सं. 1587 में ओरछा नगर की नींव डाली। राजा रूद्रप्रताप बुंदेला ने ही ओरछा में सुदृढ़ किला, महल आदि बनवाये।
आगे चलकर मधुकर शाह बुंदेला ओरछा के राजा बने। मधुकर शाह बुंदेला के बड़े भाई भारतीचंद व छोटा भाई उदयाजीत था। मधुकर शाह के आठ पुत्र थे, इनमें रामशाह सबसे बड़े व वीरसिंह देव सबसे छोटे पुत्र थे। रामशाह बुंदेला के वंशज वानपुर ठिकाने के स्वामी बने। मधुकर शाह के एक पुत्र रत्नसेन और थे, जिसको बादशाह अकबर ने गौड़ प्रदेश का राजा बनाया, पर वह अफगानों से लड़ते हुए मारा गया। मधुकर शाह के छोटे पुत्र वीरसिंह देव को छोटी जागीर मिली और वह सलीम की सेवा में आ गया। अबुल फजल से सलीम नाराज था, अबुल फजल जब दक्षिण से आ रहा था, तब वीरसिंह देव बुंदेला ने उसे मार डाला। सलीम के बादशाह बनने पर उसने वीरसिंह देव बुंदेला को रामशाह बुंदेला के स्थान पर ओरछा का राजा बना दिया तथा तीन हजार का मनसब प्रदान किया। वीरसिंह देव बुंदेला बड़े ही वीर व धर्मरक्षक राजपूत योद्धा थे, इन्होंने मथुरा में 33 रूपए लगाकर केशवदेव का मंदिर बनवाया व ओरछा में चतुर्भुज भगवान का मंदिर बनवाया। इनके पुत्र जुझारसिंह बुंदेला थे, जिनको दिल्ली बादशाह ने सम्मान दिया। जुझार सिंह बुंदेला चार हजार जात व चार हजार सवार का मनसबदार था। जुझारसिंह बुंदेला के छोटे भाई हरदोल बुंदेला को आज भी लोकदेवता के रूप में बुंदेलखंड में पूजा जाता है।
शाहजहां के काल में जूझारसिंह बुंदेला और विक्रमादित्य दोनों ने विद्रोह कर दिया। वे दोनों मुगलों से हारकर जंगलों में जा छिपे, जहां गोंडो(आदिवासी जनजाति) ने दोनों को मार दिया। इसके बाद जूझारसिंह के छोटे भाई पहाड़सिंह बुंदेला ओरछा के राजा बने। पहाड़सिंह के छोटे भाई हरदौल बुंदेला के वंशज बिजना, चिरगांव, आदि ठिकानों के मालिक बने। पहाड़सिंह का मनसब चार हजार जात व चार हजार सवार तक पहुंच गया था। पहाड़सिंह बुंदेला के दो पुत्र सुजानसिंह व इन्द्रमान थे। पहाड़सिंह के बाद सुजानसिंह ओरछा का राजा बना। इसका मनसब तीन हजार का था। विक्रम संवत् 1725 में दक्षिण में इनकी मृत्यु हुई। सुजानसिंह के बाद इन्द्रमान को ओरछा का राज्य मिला। इन्द्रमान के बाद जसवन्तसिंह, भगवन्तसिंह, उदतसिंह ओरछा के राजा बने। उदतसिंह के पृथ्वीसिंह और अमरेश दो पुत्र थे। विक्रम संवत् 1840 में पृथ्वीसिंह ने ओरछा की जगह टीकमगढ़ को अपनी राजधानी बनाई। पृथ्वीसिंह बुंदेला के बाद गन्धर्वसिंह व सावंतसिंह राजा बने। सावंतसिंह के दो पुत्र तेजसिंह व राजा विक्रमादित्य थे। तेजसिंह के बाद सुजानसिंह, हम्मीरसिंह, महेन्द्रप्रताप, भगवन्तसिंह, वीरसिंह व मधुकर शाह राजा बने। उदतसिंह के पुत्र अमरेश के वंशजों का खनियांधाना पर अधिकार रहा।
वीरसिंह देव के पुत्र पहाड़सिंह के बड़े पुत्र सुजानसिंह थे। पिता के बाद शाहजहां ने इन्हें दो हजार सवार का मनसब दिया था। मिर्ज़ा राजा जयसिंह ने पुरन्दर के किले पर हमला किया तब सुजानसिंह साथ में थे। जयसिंह के कारण वह तीन हजारी मनसबदार बन गए। औरंगजेब ने बुन्देलखण्ड के मंदिरों को नष्ट करने के लिए एक बड़ी सेना भेजी, तब धुरांगसिंह बुंदेला ने शाही सेना को हराया। औरंगजेब ने इसमें सुजानसिंह का हाथ भी माना और औरंगजेब के कोप का भाजन बनना पड़ा विक्रम संवत् 1726 में इनकी मृत्यु हो गई और इनका वंश नहीं चला।
मधुकर शाह बुंदेला के बड़े पुत्र रामशाह के पुत्र संग्रामसिंह के पुत्र राजा भारथ थे। इनके दादा रामशाह ने सलीम के विद्रोह के समय अकबर का साथ दिया था। अतः सलीम जब गद्दी पर बैठा तब रामशाह बुंदेला को बंदी बना लिया गया और उनके भाई वीरसिंह देव को ओरछा दे दिया गया। चार वर्ष बाद बासू तोमर के प्रयत्नों से इनके पुत्र भारत बुंदेला को मनसबदार बनाया गया। शाहजहां ने इन्हें पांच सदी का मनसब दिया। बाद में इनका मनसब तीन हजार जात व 2500 सवार कर दिया गया।
भारत बुंदेला का पुत्र राजा देवीसिंह था। इसने जुझारसिंह बुंदेला के विरुद्ध मुगलों की सहायता की। शाहजहां ने उसे दो हजार सवार का मनसबदार बनाया। देवीसिंह को ओरछा का राज्य भी मिला परंतु बुंदेलों के विरोध के कारण ओरछा उनसे छुट गया और वीरसिंह के पुत्र पहाड़सिंह बुंदेला को ओरछा मिला।
ओरछा नरेश के छोटे भाई उदयजीत थे। इनके नौ पुत्र थे, इन पुत्रों में सबसे बड़े प्रेमचंद बुंदेला थे। प्रेमचंद के भगवानदास व मनशाह दो पुत्र थे। भगवानदास के चम्पतराय पुत्र हुए। वीरसिंह व चम्पतराय बुंदेला ने शाहजहां से भी युद्ध किया। चम्पतराय पहाड़ों में रहकर शाहजहां के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध में भी गए और फिर बाद में औरंगजेब से उन्होंने संधि कर ली। विक्रम संवत् 1721 में चम्पतराय बुंदेला की मृत्यु हो गई। इसी चम्पतराय का पुत्र छत्रशाल बड़ा वीर राजपूत हुआ, वह इतिहास में छत्रशाल बुंदेला के नाम से प्रसिद्ध हुआ। छत्रशाल बुंदेला का मन मुगलों के विरुद्ध था। छत्रशाल बुंदेला मुगलों के विरुद्ध लड़ते रहे। 1667ई. में छत्रपति शिवाजी का छत्रशाल बुंदेला से मिलन हुआ। सन् 1671 में छत्रशाल बुंदेला ने गढ़ा कोटा जीत लिया। इन्होंने शाही माल की 100 गाड़ियां लूट ली। औरंगजेब ने क्रोधित होकर तव्वहरखां को भेजा। छत्रशाल बुंदेला ने मुग़ल सेनापति को हरा दिया, तब मुगलों की सेना ने छत्रशाल बुंदेला पर बार-बार आक्रमण किए, परंतु वीर छत्रशाल बुंदेला से मुगलों को हारना पड़ा। यमुना-चम्बल के बीच के क्षेत्र में छत्रशाल बुंदेला की तूती बजने लगी। 1707ई. में बादशाह ने छत्रशाल बुंदेला को स्वतंत्र शासक मान लिया। 1722ई. में फर्रुखाबाद के सुबेदार मुहम्मदखां ने छत्रशाल बुंदेला पर आक्रमण किया, छत्रशाल बुंदेला ने बाजीराव पेशवा से सहायता मांगी, बाजीराव की सहायता से मुहम्मदखां को सन् 1729 में पराजित किया गया। छत्रशाल बुंदेला के 52 पुत्र थे, जिनमें से चार पुत्र रानियों से थे, और 48 पुत्र दासियों से थे। रानियों से उत्पन्न हदयशाह बुंदेला को पन्ना का राज्य मिला, दूसरे पुत्र जगत राज बुंदेला को जैतपुर का राज्य मिला। छत्रशाल बुंदेला वीर ही नहीं कुशल राजनीतिज्ञ व सच्चे क्षत्रिय राजपूत थे। छत्रशाल बुंदेला के वंशजों के बुंदेलखंड में बीजापर, चरखारी, अजबगढ़, सरीला पन्ना, शाहगढ़, जिगनी, जसा, गरौली, मऊ, कालिंजर, जैतपुर, भूरागढ़, बांदा आदि राज्य थे।
बुंदेला राजपूतों ने मुगल काल में मुगलों का वीरता से सामना किया ही था, परंतु साथ ही में बुंदेला राजपूत अंग्रेजी काल में भी चुप नहीं बैठे। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध जारी रखा। जैतपुर के राजा परीक्षतदेव बुंदेला ने बुंदेलखंड के राजाओं को अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने का आह्वान किया। इन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा। परंतु अंग्रेजों की सुदृढ़ शक्ति के सामने कब तक टिक सकते थे? सन् 1842 में इनको पकड़ लिया गया और फांसी की सजा दी गई।
1857 ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बुंदेलखंड के बुंदेला राजपूतों ने अंग्रेजों के विरुद्ध काफी संघर्ष किया। बानपुर के राजा मरदानसिंह, शाहगढ़ के राजा बख्तबली आदि बुंदेला राजपूत नरेशों ने डटकर अंग्रेजी सत्ता का मुकाबला किया। इस प्रकार वीर बुंदेला राजपूत अपने धर्म व मातृभूमि की रक्षार्थ लड़ते रहे। उनका क्षेत्र आज भी मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड कहलाता है। बिहार में बावनी, सरेना, सरीवा, टीकमगढ़, इनके ठिकाने थे। खैरागढ़ से निकले बुंदेलों का रायगढ़ (बिहार) पर भी राज्य रहा है।
बुंदेला राजपूतों की शाखाएं :-
1). जिगनिया बुंदेला -- जिगनी स्थान के निकास के कारण जिगनिया बुंदेला कहलाए।
2). मोहनिया बुंदेला -- मोहनी नगर के निकास के कारण मोहनिया बुंदेला कहलाए।
3). दतेले बुंदेला -- दतेले से निकास के कारण दतेले बुंदेला कहलाए।
इनके अलावा धुंदेल, डोंगरा, नराटा, विजय, रावत, जेता, जेतवार, जेतपुरिया, सरनिया, कर्मवीर, आदि भी इनकी शाखाएं हैं।
कर्मवीर बुंदेला बलिया, देवरिया, बनारस, गोरखपुर, आजमगढ़, तथा छपरा, पटना शाहबाद, मुजफ्फरपुर, जिलों में बसते हैं। सरनिया बुंदेला छपरा, मुजफ्फरपुर जिलों में बसते हैं।
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Jay bundela.jay bundelakhand
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