Maharana Hammir Singh History
महाराणा हम्मीर, मेवाड़- रावल रतनसिंह के बाद अलाउद्दीन से संघर्ष करके मेवाड़ पर पुनः राजपूतों की सत्ता स्थापित करने वाले
महाराणा हम्मीर, मेवाड़- रावल रतनसिंह के बाद अलाउद्दीन से संघर्ष करके मेवाड़ पर पुनः राजपूतों की सत्ता स्थापित करने वाले
मेवाड़ के प्रसिद्ध दुर्ग चित्तौड़गढ़ पर दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार हो गया था। मेवाड़ के शासक रावल रतनसिंह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। रावल रतनसिंह के बाद उनका एक भी उत्तराधिकारी नहीं बचा था। मेवाड़ के राजपूत सरदारों को चिंता हो गई कि अब मेवाड़ का नेतृत्व कौन करेगा। बहुत सोच-विचार करने के बाद रावल रतनसिंह के रिश्ते में उनके ताऊ अक्षयसिंह व उनके पौत्र हम्मीरसिंह पर राजपूत सरदारों की दृष्टि गई। राजपूत सरदार उनके पास विनती करने गए कि इस विकट परिस्थिति में अब आप मेवाड़ का नेतृत्व करें, लेकिन अक्षयसिंह ने उनका यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। जब राजपूत सरदारों ने बहुत आग्रह किया तब वह बोले- "मेवाड़ इस समय शत्रु के अधीन है और मैं बूढ़ा हूं, लम्बा संघर्ष करना हैं, मैं कब तक जीऊं, क्या पता हैं? अच्छा यह है कि आप किसी युवक को मेवाड़ का नेतृत्व सौंपकर उसे शासक बनाए, वहीं अधिक अच्छा रहेगा।'
इस पर राजपूत सरदारों ने अक्षयसिंह से उनके पौत्र हम्मीरसिंह को मांगा। अक्षयसिंह ने प्रसन्नता के साथ यह प्रस्ताव मान लिया। राजपूत सरदारों में खुशी छा गई। बस, अब क्या था, हम्मीर सिंह का उसी समय राजतिलक कर दिया गया। हम्मीरसिंह को महाराणा की उपाधि दी गई, और मेवाड़ की रावल उपाधि अन्त हो गया। चारों ओर "महाराणा हम्मीर सिंह की जय" के नारों से आकाश गूंज गया।
हम्मीर सिंह अभी किशोर अवस्था में ही थे, यही कारण था कि खिलजी के साथ हुए युद्ध में वह शामिल नहीं हुए थे। लेकिन हम्मीर सिंह वीर प्रकृति के राजपूत थे। राणा बनने के दूसरे ही दिन वह जंगल में स्थित अपनी कुलदेवी के मंदिर में अकेले ही पैदल आशीर्वाद लेने चले गए। रास्ता विकट था और कुछ दूर भी।
जंगल शुरू होते ही राणा हम्मीर को शेर की दहाड़ सुनाई दी, हम्मीर एक क्षण के लिए अवश्य रूके, परन्तु फिर आगे की ओर चल पड़े। जंगल में कुछ दूर अंदर जाते ही उनके रास्ते के बीच में शेर बैठा दिखाई दिया। राणा हम्मीर के पैर फिर रूके, लेकिन उन्होंने अपनी कमर पर बंधी तलवार की ओर हाथ बढ़ाया, राणा हम्मीर का आत्मविश्वास जगा और पुनः आगे की ओर बढ़ने लगे। शेर अपनी जगह निश्चित भाव से बैठा था। राणा हम्मीर के पास शेर से भिड़ने के अलावा कोई उपाय नहीं था। राणा हम्मीर ने तुरन्त ही अपनी म्यान से तलवार निकाली और शेर से भीड़ने के लिए तैयार हो गए। उधर शेर भी ऐसे बैठा था मानो जैसे उसे कोई भय ही न हो। जैसे ही राणा हम्मीर शेर के पास गए, शेर जोर से दहाड़ा और राणा हम्मीर पर आ लपका, किसी तरह हम्मीर ने अपने आपको बचाया। अब दोनों एक दूसरे पर आक्रमण करने लगे। शेर ने एक बारी में अपने पंजे से ऐसा झपट्टा लगाया कि राणा हम्मीर की तलवार टूट गई, लेकिन वह घबराएं नहीं, अब वह शेर पर निगाहें जमाएं हुए थे। शेर ने हम्मीर को घूरा और दहाड़ लगाई, लेकिन राणा हम्मीर भी शेर की चमकती आंखों से आंखें मिला रहे थे। शेर ने इस बार जोर से आक्रमण किया, हम्मीर ने शेर के अगले पंजों को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिए, मल्ल युद्ध जैसी स्थिति बन गई थी। शेर पूरे जोर से अपने पंजों को छुड़वाने का प्रयत्न करता रहा, लेकिन हम्मीर ने उसे हिलने नहीं दिया और अब हम्मीर ने शेर को जमीन पर जोर से पटक दिया। जैसे ही शेर जमीन पर लुढ़का, हम्मीर उस पर तत्काल चढ़ बैठा।
उसी क्षण जंगल में एक अद्भुत प्रकाश की रोशनी हुई। राणा हम्मीर ने आंखें उठाई, सामने साक्षात् देवी मां शेर पर सवार खड़ी थी। राणा हम्मीर को सब कुछ समझने में बिल्कुल भी देर नहीं लगी, वह उठे और देवी के चरणों में प्रणाम किया और। देवी मां ने भी आशीर्वाद हेतु उसके सिर पर हाथ रख दिया और बोली "तुम अपनी परीक्षा में सफल हो गए हो, मैंने ही तुम्हारी परीक्षा के लिए वनराज को भेजा था। अब तुम उठो, देर मत करो, तुम्हारा यह घोड़ा और तलवार तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं, जाओ, इसी तरह लगन और निष्ठा से अपने देश को शत्रुओं से मुक्त करवाओ।"
राणा हम्मीर ने देवी के आदेशानुसार दृष्टि उठाई तो एक घोड़ा और उस पर रखी एक तलवार थी, शेष कुछ नहीं था। सब कुछ देवी का आशीर्वाद था।
राणा हम्मीर घोड़े और तलवार के साथ अपने गांव लौटे। गांव लौटते ही उन्होंने सभी राजपूत सरदारों को तुरन्त अपनी सेना लेकर आने को कहा और फिर राणा हम्मीर ने अपनी सेना संगठित कर बिना कोई देरी किए चित्तौड़ दुर्ग की ओर बढ़ गए। बहुत शीघ्र ही राणा हम्मीर ने कुलदेवी की आशीर्वाद से अपनी मातृभूमि विदेशी शत्रुओं से आजाद करवा ली थी और मेवाड़ में फिर एक बार अपने वंश(सूर्यवंशी) और कुल(गहलोत/सिसोदिया) का वर्चस्व स्थापित कर दिया था।
Maharana Hammir Singh History
चित्तौड़गढ़ का इतिहास
महाराणा हम्मीर सिंह का इतिहास
मेवाड़ का इतिहास
रावल रतनसिंह के बाद मेवाड़ का क्या हुआ
Post a Comment
0 Comments