राजा नागभट्ट रघुवंशी प्रतिहार (प्रथम)
राजा नागभट्ट रघुवंशी प्रतिहार (प्रथम)
ग्वालियर के अभिलेख से ज्ञात होता है कि रावण को मारने वाले श्रीराम के अनुज लक्ष्मण प्रतिहार वंश के मूलपुरुष है यानी कि प्रतिहार क्षत्रिय लक्ष्मण जी के वंशज हैं और रघुवंशी क्षत्रिय हैं, और इस प्रतिहार शाखा का पहला ऐतिहासिक पुरूष राजा नागभट्ट प्रतिहार प्रथम को बताया गया है। नागभट्ट की शिलालेखों और पुराने ऐतिहासिक स्त्रोतों में काफी प्रशंसा की गई है।
अरबों ने आठवीं शताब्दी के मध्य में सिंध और मुल्तान को जीत लिया था और वहां सिंध में खलीफा का प्रतिनिधि जूनैद था। जुनैद और उसका अरबी सेनापति हबीब मर्रा ने मालवा, भड़ौच, मारवाड़ और उज्जैन पर आक्रमण कर दिया, तब उज्जैन के राजा नागभट्ट ने उनका कारगर मुकाबला किया और अरबों की सेना को पीछे धकेल दिया। ग्वालियर प्रशस्ति में लिखा है कि धर्म के नाशक शक्तिशाली म्लेच्छ शासक की सेनाओं को चूर करने वाला राजा नागभट्ट स्वयं नारायणस्वरूप लोगों की रक्षा के लिए उपस्थित हुआ है।
राजा नागभट्ट का राज्य उज्जैन से सिंधु सागर (अरब सागर) तक फैला हुआ था। अंग्रेजो ने सिंधु सागर का नाम अरब सागर किया था। भोज की ग्वालियर प्रशस्ति में भी नागभट्ट द्वारा मुस्लमानों को हटाने का उल्लेख है। शिलालेखों के अनुसार दंतिदुर्ग राष्ट्रकूट (राठौड़) ने भी राजा नागभट्ट की सहायता की थी।
राजा नागभट्ट ने इसके अतिरिक्त जिन प्रदेशों पर अरबों ने अधिकार कर लिया था, वहां से अरबों को खदेड़कर वह प्रदेश आजाद करवाए थे। इसकी पुष्टि भड़ौच के चौहान राजा भतृवडढ़ के 756ई. के हांसोट अभिलेख से होती है।
अरब इतिहासकार बिलाजुरी लिखता है कि सिंध के सूबेदार जुनैद के बाद जब तमीम सूबेदार बना तो "मुसलमानों को हिन्द के कई प्रदेशों से पीछे हटना पड़ा।"
नागभट्ट प्रथम द्वारा स्थापित प्रतिहार साम्राज्य मुसलमानों के भारत विजय से पूर्व का सबसे अंतिम महान साम्राज्य था। एक शताब्दी तक इस साम्राज्य ने भारत की मुसलमानों से रक्षा की थी।
यह प्रतिहार साम्राज्य ही था, जिसने अरब आक्रमणों का इतनी सफलता से एक शताब्दी तक सामना किया था। यह उनकी भारतीय स्वतंत्रता की महान सेवा थी।
प्रतिहार साम्राज्य की शक्ति और संगठन का सबसे प्रामाणित वर्णन अरब के इतिहासकारों ने किया है। हेबल ने लिखा है कि प्रतिहार क्षत्रियों ने जो दीवार खड़ी कर दी थी, उसको तोड़कर अरब के मुसलमान भारत में प्रवेश नहीं कर सके।


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