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ग्वालियर के प्रतिहारों का इतिहास - Pratihar of Gwalior's
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ग्वालियर के प्रतिहारों का इतिहास
कन्नौज के प्रतिहार शासकों का राज्य बहुत दूर तक फैला हुआ था। बहुत से राजा उनके सांमत के रूप में राज्य करते थे। उन्हीं शासकों में महाराजाधिराज महेन्द्रपाल के पुत्र विनायकपाल कन्नौज के प्रसिद्ध शासक थे। विनायकपाल के बड़े पुत्र देवपाल कन्नौज के सम्राट हुए। छोटे पुत्र ध्रुवपाल थे। इनके छोटे पुत्र ध्रुवपाल के वंश में क्रमश: राज्यपाल, कर्णपाल, चन्द्रपाल, धर्मपाल व गंगपाल हुए। गंगपाल प्रतिहार का विवाह नरवर के तेजकरण कछवाह की पुत्री से हुआ। गंगपाल का समय विक्रमी संवत् 12वीं शताब्दी का अन्तिम चरण माना जाता है। इसके पुत्र परमलदेव ने 1129 ई. के लगभग ग्वालियर पर अधिकार किया और ग्वालियर के पहले प्रतिहार शासक बने। प्रतिहारों से पूर्व ग्वालियर पर कछवाहों का राज्य था। ग्वालियर पर प्रतिहारों का लगभग सौ वर्ष तक अधिकार रहा। परमलदेव के पुत्र विजयपाल के तीन पुत्र हुए- जाल्हणदेव, गिरमेशाह और शिविरशाह। शिविरशाह ने दक्षिण प्रदेश में उरई, कोटस, जालौन मे अपना राज्य स्थापित किया था। जाल्हणदेव ग्वालियर के शासक रहे इसके बाद क्रमशः बासुदेव, संग्रामदेव, महिच्छदेव, कीर्तिदेव, सलकमन, कर्णदेव, व सांरगदेव ग्वालियर के शासक हुए। सुल्तान कुतुबद्दीन ने प्रतिहारों के ग्वालियर पर कई आक्रमण किए। प्रतिहारों ने सफलतापूर्वक प्रतिरोध भी किया था। कुतुबुद्दीन ने बहाउद्दी़न को बयाना का किलेदार बनाया और उसने बयाना से ग्वालियर पर कई हमले किए परन्तु प्रतिहारों ने बहादुरी से सभी हमलों का प्रतिकार किया और कुतुबुद्दीन प्रतिहारों के रहते हुए ग्वालियर को विजय नहीं कर सका। इल्तुतमिश के बादशाह बनने पर उसने ग्वालियर के किले पर बड़ी सेना के साथ आक्रमण किया और किले का घेरा एक वर्ष तक चला। अन्त में ग्वालियर का शासक सारंगदेव प्रतिहार युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ और सुल्तान इल्तुतमिश का ग्वालियर पर अधिकार हो गया।
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