ठाकुर रामदास राठौड़, मेड़तिया ठिकाना - बलून्दा


 ठाकुर रामदास राठौड़, मेड़तिया


ठिकाना - बलून्दा (1585-1622 ई.) मेड़ता के राव वीरमदेव के पोते और राव चांदा जी के पुत्र रामदास राठौड़ थे। रामदास राठौड़ 1585ई. में बलून्दा के ठाकुर बने। उस समय मेड़ता का मुगल हाकिम अबू मोहम्मद था। अबू मोहम्मद ने लूटपाट के उद्देश्य से जैतारण परगने के निम्बोल गांव पर 1622ई. में आक्रमण कर दिया और यहां आकर अबू मोहम्मद ने गांव के लोगों से धन, हीरे-मोती और सोने-चांदी के जेवरात आदि लुट लिए, साथ ही में अबू मोहम्मद ने नंदवाण बोहरा गौत्र के पालीवाल ब्राह्मण की महिलाओं व गायों को भी निर्दयतापूर्वक लूटकर ले गया। तब निम्बोल गांव के ब्राह्मण और सेठ और आस-पास के गांवों के लोगों ने बलून्दा के ठाकुर रामदास राठौड़ (मेड़तिया) को इस बारे में जानकारी दी। रामदास राठौड़ को घटना के बारे में जानकारी प्राप्त होते ही, उनका खून खौल उठा, और बोल पड़े, उन तुर्को की इतनी हिम्मत की मेरे लोगों का धन लूटे और मेरी बहन बेटियों और गौ माता पर जबरन हाथ डाले। रामदास राठौड़ ने बिना देरी किए तत्काल ही कुलदेवी मां का स्मरण कर ढाल, तलवार बांध और घोड़े पर सवार होकर और अपने साथ अपने पोलपात राजकवि माधवदास दधवाड़िया चारण और अपने राजपूत भाई बंधुओं व गांव के ही कुछ राजपूत सैनिकों को साथ लेकर अबू मोहम्मद पर चढ़ाई कर दी। अबू मोहम्मद का पीछा करते हुए रामदास राठौड़ मुगदड़ा गांव पहुंचे, वहीं से अबू मोहम्मद गुज़र रहा था, तभी अबू मोहम्मद की सेना पर रामदास राठौड़ ने धावा बोल दिया। यह युद्ध मुगदड़ा गांव और खाखड़की गांव के बीच हुआ था। यह युद्ध बड़ा ही विकट और भयंकर था, मात्र 50-60 सैनिक दल लेकर रामदास राठौड़, सैंकड़ों मुगलों से लड़ रहे थे। इस युद्ध में राजपूतों ने अच्छा रणकौशल दिखाकर, शत्रुओं को गाजर मूली की तरह काट डाला। रामदास राठौड़ और राजपूतों के छोटे से दल का पराक्रम देखकर अबू मोहम्मद लुटा हुआ माल,जेवरात, ब्राह्मणों की स्त्रियों और गाय माता को छोड़कर, डरकर भाग गया और अपनी मुगल चौकी में जाकर छिप गया। राजपूतों ने गाय माता और ब्राह्मण स्त्रियों तथा लुटा हुआ धन मुगलों से छुड़वा लिया। परन्तु युद्ध के अंत में रामदास राठौड़ (मेड़तिया) ने अपने 52 योद्धाओं के साथ वीरगति प्राप्त की।

गांव मुगदड़ा में जहां युद्ध हुआ था, उस स्थान पर आज भी इन वीर राजपूतों की मृत्यु स्मारक देवलियां खड़ी है, जिन्हें नौ देवलियां के नाम से जनमानस में जाना जाता है और नवरात्रा के दिनों में आस-पास के लोगों द्वारा पूजा जाता है। आस-पास के बड़े  बुजुर्गो व लोगों का ऐसा भी मानना है कि रामदास राठौड़ (मेड़तिया) का युद्ध करते हुए सर कट गया, परंतु वह सर कटने के बाद भी युद्ध लड़ते रहे।

बीकानेर के महाराजा रायसिंह के छोटे भाई और डिंगल राजस्थानी के महान, अमर कवि महाराज पृथ्वीराज राठौड़ ने इस युद्ध पर एक श्रद्धांजलि काव्य लिखा है जो इस प्रकार है :-

विप्र बचावण कारणै, बजै जुझारू ढोल
चढ़ चांदा था पाटवी, बदी जाय निम्बोल,
रामदास तद राम भज, चढ़िया तुरका लार,
तुरकांरा तुंडल करै, विप्र छुड़ावण सार

अर्थात्- ब्राह्मणों की रक्षा हेतु राव चांदा राठौड़ के पाटवी पुत्र रामदास निम्बोल ठिकाने के गौरव की रक्षा हेतु पहुंच, राम का नाम लेकर तुर्कों का मार भगा ब्राह्मण व गायों को बचाया।

इस युद्ध में रामदास जी के अतिरिक्त माधवदास चारण, खंगार नाई, आठ अन्य राजपूत, मुगदड़ा के ठाकुर जैत सिंह राठौड़ एवं पचौली राधोदास बलुओत (जैतारण के अधिकारी) भी वीरगति को प्राप्त हुए।


संदर्भ ग्रंथ (Reference) :-
1. बलून्दा ठिकाणै री ख्यात
2. बलून्दा गौरव - श्रवण कुमार, पृष्ठ 21,22

Post a Comment

0 Comments