डालनिया ठिकाने का इतिहास - History of Dalniya Thikana

डालनिया ठिकाने का इतिहास, History of Dalniya Thikana
History of Dalniya Thikana

 डालनिया ठिकाने का इतिहास

ग्वालियर के राजा रामशाह तंवर थे, उनके तीन पुत्र शालिवाहन, भवानीसिंह और प्रतापसिंह थे। राजा रामशाह तंवर और उनके तीनों पुत्रों ने हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से युद्ध कर वीरगति प्राप्त की थी। राजा रामशाह तंवर के बड़े पुत्र शालिवाहन के तीन पुत्र थे - राव श्यामसिंह, राव मित्रसेन और राव धर्मागत जी। शालिवाहन जी के सबसे छोटे पुत्र राव धर्मागत जी अपनी युवावस्था में ऐसाह नामक अपने पैतृक स्थान चले गए थे। राव धर्मागत जी के राव देवसहाय पुत्र हुए और राव देवसहाय के राव उदयसहाय पुत्र हुए और राव उदयसहाय के केशवदास और मनोहरदास पुत्र हुए। राव केशवदास ऐसाह से बीकानेर रियासत चले गए थे और यहां बीकानेर महाराजा कर्णसिंह जी ने उन्हें ताजीम का सम्मान व ठिकाना लखासर की जागीर देकर अपने परसंगी गणायतों में उन्हें शामिल कर लिया था। राव केशवदास के छोटे भाई मनोहरदास जी ऐसाह में ही रह रहे थे। उन्हें भी केशवदास जी ने बीकानेर बुला लिया। जब वे बीकानेर आ रहे थे तब रास्ते में उन्होंने जयपुर के पास अपना पड़ाव डाला। जब सवाई राजा जयसिंह को यह मालूम हुआ कि राजा रामशाह के वंशज मनोहरदास ने यहां डेरा डाला है तब उन्होंने उनके वंश की कीर्ति को देखते हुए उन्हें जयपुर बुला लिया।

राव मनोहरदास अपने परिवार सहित जयपुर आ गए तथा कुछ दिन रहने के उपरान्त जब उन्होंने अपने भाई राव केशवदास के पास बीकानेर जाने की आज्ञा मांगी तब सवाई जयसिंह ने उन्हें रोक लिया, और 12 गांवों सहित कालाडेहरा की जागीर देकर उन्हें अपने पास रख लिया।

राव मनोहरदास ने राजा जयसिंह के आदेश पर सांगानेर की तरफ 12 गांव बसाये जिनमें मनोहर हाला, मंदरामपुरा, चिमनपुरा, जगन्नाथपुरा, राथलियां, सामपुरा, भीकारपुरा, डालनिया, नारेड़ा इत्यादि प्रमुख गांव थे। राव मनोहरदास के इस साहसिक कार्य से प्रभावित होकर सवाई जयसिंह ने उन्हें 'गरीब नवाज' की पदवी से सम्मानित किया था।

राव मनोहरदास ने अपनी कार्यकुशलता से सवाई जयसिंह को प्रभावित कर दिया था। सवाई जयसिंह जी उन्हें 'तोमरेश्वर' कह कर सम्बोधित किया करते थे।

मनोहरदास जी की पुत्री लाडकुंवरी का विवाह सवाई जयसिंह के साथ हुआ था। उनके देहान्त के पश्चात् कालाडेहरा की जागीर उनके पुत्र को मिली, परन्तु अल्पायु में ही उनकी मृत्यु हो गई। इनके दो पुत्र सूरजमल और चिमनसिंह हुए।

ठाकुर सुरजमल की नाबालगी में कालाडेहरा का ठिकाना जयपुर रियासत के अधीन कर दिया गया तथा ठिकाने का कार्यभार रियासत द्वारा नियुक्त कर्मचारी देखने लगे। ठाकुर सूरजमल और उनके भाई चिमनसिंह की आयु उस समय लगभग 10 वर्ष और 8 वर्ष की थी। बीकानेर में राव केशवदास के वंशज ठिकाना लखासर और झंझेऊ में रह रहे थे। ये दोनों भाई अपने तंवर भाईयों के ठिकाने झंझेऊ में आकर रहने लगे। जब ठाकुर सूरजमल युवा हुए तब वे अपने पैतृक ठिकाना कालाडेहरा की जागीर लेने के लिए जयपुर गये जयपुर में उस समय महाराजा ईश्वरसिंह और माधोसिंह के मध्य वैमनस्य चल रहा था इसलिए उनकी जागीर बहाल नहीं हो सकी, तथा वे वहीं डेरा डाल कर रहने लगे। इनके पौत्र सूरसिंह हुए वे भी जयपुर के पास अपनी पैतृक जागीर के लिए संघर्ष करते रहे।

 महाराजा सवाई जगतसिंह के समय उनकी महारानी की सवारी ठाकुर सूरसिंह के डेरे के पास से जा रही थी। उनकी सवारी को लूटने के इरादे से लाडखानियों के 1500 सैनिकों का दल आ पहुंचा। महारानी की सवारी के सैनिकों के मुखिया कानसिंह भाटी ने चतुराई से काम लिया और अपने सैनिकों के द्वारा वहां से एक कोस की दूरी पर ठाकुर सूरसिंह जी के डेरे पर यह समाचार पहुंचाया। जब सूरसिंह को यह समाचार मिला तो उन्होंने सैनिकों को तैयार किया घोड़ों पर जिणे कसी और तुरन्त चल पड़े। उनके पहुंचने तक कानसिंह भाटी ने लाड़खानियों से लड़ाई जारी रखी। ठाकुर सूरसिंह ने अपने साथियों के साथ लाड़खानियों पर भयंकर हमला किया। घमासान युद्ध हुआ और अन्त में लाड़खानियों की पराजय हुई। उनके जो कुछ सैनिक बचे थे, वे भाग गये।

महारानी साहिबा की सवारी जब जयपुर पहुंची तब उन्होंने महाराजा जगतसिंह से ठाकुर सूरसिंह के द्वारा दी गई सेवा से अवगत कराते हुए उनकी सिफारिश की। अगले दिन महाराजा जगतसिंह ने ठाकुर सूरसिंह को बुलाकर सम्मानित किया और उनको पांच गांवो डालनियां, नारेड़ा, मनोहरहाल, ओर मंदरामपुरा सहित जागीर इनायत की। उन्हें हाथ का कुरब और 'सोना नवीस' की पदवी और महाराजा के हाथी के आगे अपना घोड़ा हांकने का सम्मान दिया। ठाकुर सूरसिंह ने डालनिया ठिकाने में अपना निवास स्थान बनाया तथा वे वहीं पर निवास करने लगे। उन्होंने डालनिया गांव में राधा गोपालजी का मंदिर बनवाया, डालनिया में नया गढ़ बनवाया। गढ़ के सामने हनुमानजी का देवरा बनाया तथा रामदेवजी का मन्दिर भी बनवाया। उन्होंने अपने जागीरी के नाटेड़ा गांव में गोपालजी का मन्दिर और तालाब पर एक बावड़ी बनवाई और डालनिया में तालाब खुदवाया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ठाकुर सूरसिंह ने जनहितार्थ अनेक कार्य करवाए। वे सच्चे अर्थों में जनता के पालनहार थे।

ठाकुर सूरसिंह को स्थापत्य का शौक था उन्होंने डालनिया में गढ़ की नींव रखी और साथ ही उन्होंने जयपुर में किशनपोल बाजार में दो बड़ी शानदार हवेलियों का निर्माण भी करवाया।

ठाकुर सूरसिंह ने दो विवाह किये थे। पहला वि. संवत् 1891 में सुख कुंवरी से और दूसरा विवाह गुलाब कुंवरी से किया। दो विवाह करने के उपरान्त भी इनको पुत्ररत्न की प्राप्ति न हो सकी। ठाकुर सूरसिंह ने अपनी बहन का विवाह सवाई राजा जगतसिंह के साथ किया था। इनके औलाद नहीं होने के कारण उन्होंने ठिकाना लखासर के ठाकुर सरूपसिंह के पुत्र दौलतसिंह के वंशज श्यामसिंह के पुत्र फकीरसिंह जी को गोद लिया था।

ठाकुर फकीरसिंह डालनिया ठिकाने के ठाकुर बने। इनके एक पुत्र गोरधनसिंह हुए जिनकी अल्पायु में ही मृत्यु हो गई। ठाकुर फकीरसिंह ने अपने ठिकाना लखासर के छुटभाई ठिकाना झंझेऊ से उदयसिंह के पुत्र भूरसिंह को गोद लिया। इनकी गोदनशीनी संवत् 1941 वि. को हुई। भूरसिंह का विवाह वि. संवत् 1946 को हुआ जिनसे उनके एक पुत्र हुआ। उसकी मृत्यु जन्म के कुछ समय पश्चात् ही हो गई। बाद में इनके कोई सन्तान नहीं हुई इसलिए इन्होंने अपने भाई रघुनाथसिंह के पुत्र किशनसिंह को संवत् 1990 वि. को गोद लिया। ठाकुर किशनसिंह के एक पुत्र हेमसिंह का जन्म वि.सं. 1992 को हुआ था। इनके तीन पुत्र उम्मेदसिंह, गुलाबसिंह और विजयसिंह हुए। इनके बाद डालनिया के ठाकुर उम्मेदसिंह हुए जिनके कुंवर भवानीसिंह और कु. करणीसिंह हैं। कु. भवानीसिंह के एक पुत्र भंवर गजसिंह और करणीसिंह के पुत्र आदित्यसिंह वर्तमान में है।

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