बनीरोत (बणीरोत) राठौड़ों का इतिहास और ठिकाने आदि


बनीरोत (बणीरोत) राठौड़ों का इतिहास और ठिकाने आदि

बनीरोत राठौड़ -- राव रणमल (जोधपुर) के पुत्र कांधल जी और कांधल जी के पुत्र वाघ जी थे। वाघ जी के तीन पुत्र थे, बणीर, नारायणदास व रायमल। वाघ जी के बड़े पुत्र बणीर जी के वंशज बणीरोत राठौड़ कहलाते हैं। जब राव कांधल जी छत्तरियांवाली में काम आये, अपने पिता की मौत का बैर लेते हुए बाघ जी थोड़े ही महीने बाद झांसल के युद्ध में काम आये । बणीर जी छोटे थे और अकेले भी, उन्होंने पहले मेलूसर पर अपना कब्ज़ा किया और वहां तालाब भी बनवाया। फिर उन्होंने अपना ठिकाना घांघू में बाँधा। उनके बाद बणीरोतों के तीन बड़े ठिकाने कायम हुए –

01 - चुरू (मालदेव जी) 02 - घांघू (अचलदास जी) 03 - घंटेल (महेशदास जी)

बीकानेर महाराजा लूणकर्ण जी द्वारा ददरेवा पर अधिकार के समय बणीर जी उनकी सेना में शामिल थे। जैसलमेर पर महाराजा लूणकर्ण जी ने चढ़ाई की तब भी बणीर जी साथ थे। बीकानेर महाराजा जैतसिंह के समय वि. सं. 1791 में कामरां ने जब बीकानेर पर चढ़ाई की तब उसे हटाने में बणीर जी का पूरा सहयोग था। जयमल मेड़तिया की राव कल्याणमल ने मालदेव के विरुद्ध सहायता की, तब भी बणीर जी बीकानेर सेना के साथ थे।

बणीर जी के दस पुत्र थे। मेघराज, मेकरण, मेदसी (सिरियासर शेखावाटी), अचलदास (घांघू), मालदेव (चुरू), कल्लाजी, रूपसिंह, हरदास सिंह, हमीरसिंह, महेशदास जी। बणीर जी के पुत्र महेशदास जी ने अपने भाई मालदेव से युद्ध कर चुरू पर अधिकार कर लिया, महेशदास के बाद चुरू की गद्दी पर क्रमशः सांवलदास, बलभद्र, भीमसिंह व कुशलसिंह हुए‌। कुशलसिंह ने, बीकानेर नरेश कर्णसिंह व अनूपसिंह के साथ दक्षिण में रहकर कई युद्धों में भाग लिया। बीकानेर महाराजा कर्णसिंह की मृत्यु औरंगाबाद में हुई, तब बीकानेर के सारे सरदार उन्हें छोड़कर बीकानेर चले आए, पर कुशलसिंह ने अपना कर्त्तव्य निभाया और सारे मृत कर्म करवाए। कुशलसिंह ने ही शहर की सुरक्षा के लिए चुरू में किला बनवाया। सुरक्षा के कारण फतहपुर से बहुत से महाजन यहां आकर बस गए। कुशलसिंह के बाद इन्द्रसिंह चुरू की गद्दी पर बैठे। शेखावतों द्वारा फतहपुर की विजय के समय इन्द्रसिंह सेना सहित नवाब की सहायता को गये थे।

इन्द्रसिंह के बाद संग्रामसिंह चुरू की गद्दी पर बैठे। बीकानेर महाराजा जोरावर सिंह, संग्रामसिंह से नाराज़ हो गए और चुरू का पट्टा इनकी जगह जुझार सिंह के नाम कर दिया, तब संग्रामसिंह बीकानेर राज्य के विद्रोही हो गये। उन्होंने बीकानेर पर जोधपुर का आक्रमण होने के समय जोधपुर का साथ दिया। संग्रामसिंह ने चुरू पर आक्रमण कर जुझारसिंह से चुरू छिन लिया। बीकानेर नरेश जोरावर सिंह ने सात्यूं में इस स्वाभिमानी सरदार संग्रामसिंह को वि. सं. 1798 में छल से मरवा डाला। जोरावर सिंह ने चुरू पर अधिकार कर लिया। संग्रामसिंह के बाद धीरतसिंह, हरीसिंह व शिवाजीसिंह हुए।

शिवाजीसिंह चुरू के एक स्वाभिमानी व वीर योद्धा हुए। उन्होंने महाराजा सूरतसिंह बीकानेर की अधीनता स्वीकार नहीं की। इसलिए महाराजा सूरतसिंह ने एक सेना को चुरू पर आक्रमण करने भेज दिया, परन्तु शिवाजीसिंह ने बीकानेर सेना को पराजित कर दिया। जोधपुर द्वारा बीकानेर पर आक्रमण की सूचना पाकर महाराजा सूरतसिंह ने शिवाजीसिंह को सहायता के लिए बुलाया, परंतु शिवाजीसिंह बीकानेर की सहायता करने की बजाय बीकानेर क्षेत्र को ही लूटने लगे। महाराजा सूरतसिंह ने अन्त में 1870 वि. सं. में चुरू पर आक्रमण कर दिया, लेकिन महाराजा को सफलता नहीं मिली और वहां से वह रिणी चले गए। कुछ समय बाद महाराजा सूरतसिंह ने वापस चुरू पर आक्रमण किया। शिवाजीसिंह ने बीकानेर सेना से कड़ा मुकाबला किया। शिवाजीसिंह के किले में जब गोला बारूद खत्म हो गया तब शिवाजीसिंह ने चांदी के गोले ढलवाये और युद्ध जारी रखा। इसी समय 1871 वि. कार्तिक सुदी में शिवाजीसिंह का किले में देहांत हो गया, तब जाकर कहीं बीकानेर का चुरू पर अधिकार हुआ‌। इनके बाद इनके पुत्र पृथ्वीसिंह ने चुरू को वापस लेने की बहुत कोशिश की और अन्त में बहुत से लोगों की मदद से चुरू पर अधिकार भी कर लिया। महाराजा सूरतसिंह इस बात को लेकर बहुत चिंतित हो गए। इन्होंने और कोई उपाय न देखकर अंग्रेजों से संधि कर ली और फिर अंग्रेज सेनाधिकारी ब्रिगेडियर अर्नाल्ड ने चुरू को विजय किया। बीकानेर महाराजा सूरतसिंह के देहांत के बाद रतनसिंह बीकानेर की गद्दी पर बैठे। राजा रतनसिंह ने पृथ्वीसिंह से मेल कर लिया और उन्हें कूचोर की जागीर दी। कूचोर की गद्दी पर पृथ्वीसिंह के बाद क्रमशः भैरूसिंह, बालसिंह, प्रतापसिंह व कान्हसिंह बैठे।

बनीरोत राठौड़ों की खांपे (शाखाएं) :-

1. मेघराजोत बनीरोत :- बणीर जी के बड़े पुत्र मेघराज के वंशज मेघराजोत बनीरोत कहलाते हैं। इनका ठिकाना ऊंटवालिया था।

2. मैकरणोत बनीरोत :- बणीर जी के पुत्र मैकरण के वंशज मैकरणोत बनीरोत कहलाते हैं। इनके वंशज कानासर में बसते हैं।

3. अचलदासोत बनीरोत :- बणीर जी के पुत्र अचलदास जी के वंशज अचलदासोत बनीरोत कहलाते हैं। इनकी जागीर में घांघू गांव था।

4. सूरसिंहोत बनीरोत :- बणीर जी के पुत्र मालदेव जी के पुत्र सांवलदास जी के पुत्र सूरसिंह के वंशज सूरसिंहोत बनीरोत कहलाते हैं। इनकी जागीर में चलकोई गांव था।

5. जयमोल बनीरोत :- सांवलदास (चुरू) के पुत्र जयमल के वंशज जयमोल बनीरोत कहलाते हैं। यह इन्द्रपुरा गांव में निवास करते हैं।

6. प्रतापसिंह बनीरोत :- चुरू के ठाकुर सांवलदास के पुत्र बलभद्र के पौत्र तथा भीमसिंह के पुत्र प्रतापसिंह थे। इन्हीं प्रतापसिंह के वंशज प्रतापसिंहोत बनीरोत है। लोसणा, तोगावास आदि इनकी जागीर में थे।

7. भोजराजोत बनीरोत :- प्रतापसिंह के भाई भोजराज के वंशज भोजराजोत बनीरोत कहलाते हैं। जसरासर, दूधवा मीठा इनके ठिकाने थे।

8. चत्रसालोत बनीरोत :- भोजराज के भाई कुशलसिंह चुरू के पुत्र चत्रसाल के वंशज चत्रसालोत बनीरोत कहलाते हैं। देपालसर इनका मुख्य ठिकाना था।

9. नथमलोत बनीरोत :- चत्रसाल के भाई इन्द्रसिंह (चुरू) के पुत्र नथूसिंह के वंशज नथमलोत बनीरोत कहलाते हैं। इनकी जागीर में सोमासी गांव था।

10. धीरसिंहोत बनीरोत :- चुरू के इन्द्रसिंह के पुत्र संग्रामसिंह के पुत्र धीरसिंह के वंशज धीरसिंहोत बनीरोत कहलाते हैं। संग्रामसिंह के बाद धीरसिंह चुरू के ठाकुर रहे। सात्यूं (इकलड़ी ताजीम), झारिया (दौलड़ी ताजीम), पींथीसर आदि इनके ठिकाने थे।

11. हरिसिंहोत बनीरोत :- धीरसिंह के भाई हरीसिंह भी चुरू के ठाकुर रहे थे। इनके ही वंशज हरीसिंहोत बनीरोत कहलाते हैं। इनका एक ठिकाना जोधपुर रियासत में हरसोलाव, तथा बीकानेर रियासत में बुचावास, धोधलिया, थिरियासर, घांघू, हरपालसर आदि इनके ठिकाने थे। जयपुर राज्य में हिंगोलिया भी इनका एक ठिकाना था।


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