डोडिया परमार/ डोड परमार राजपूतों का इतिहास


डोडिया परमार/ डोड परमार राजपूतों का इतिहास


डोडिया (डोड) राजपूतों की उत्पत्ति परमारों से हुई मानी जाती है। अब जानते हैं परमारों से डोडिया (डोड) शाखा का निकास कहां से और कब हुआ। क्षत्रिय जाति सूची पुस्तक में मालवा नरेश उदादित्य के पुत्र पीलधवल के डोड से डोड या डोडियों का निकास माना गया है। मालवा के उदादित्य परमार का समय वि. सं. 1143 निश्चित हैं। बारण (बुन्देलखण्ड) में वि. सं. 1233 का अनंग डोड का शिलालेख है, जिसके अंनग डोड के 15 पूर्वजों के नाम दिए हुए हैं। इस शिलालेख के अनुसार डोडिया राजपूत का समय वि. सं. 900 के लगभग पहुंचता है तथा डोडिया राजपूतों की उत्पत्ति वि. सं. 900 से पहले ही हो चुकी थी। परमारों की प्राचीन खांप होने के कारण बाद के बही भाटों और लेखकों ने इस वंश को अलग वंश मानकर 36 राजपूत राजकुलों में स्थान दे दिया है। लेकिन डोडिया 36 राजपूत राजकुलों में से एक नहीं है, परमार (पंवार) कुल की एक खांप है।

परमारों की इस खांप का नाम डोड क्यूं पड़ा? प्रमाण उपलब्ध नहीं है। परंतु जनश्रुति के अनुसार आबू में यज्ञ हुआ, तब वहां खड़े केले के वृक्ष के डोडे से पुरुष उत्पन्न हुआ, इस कारण उस पुरुष के वंशज डोडा या डोडिया कहलाए। यह सब बस कल्पनाएं है, डोडे से कोई पुरुष उत्पन्न नहीं होता। गुजरात में बड़ौदा के पास डोडा नामक स्थान से निकास के कारण यह डोड या डोडिया कहलाने की बात प्रचलित है। परमार आबू से गुजरात, मालवा आदि स्थानों में फैले हुए हैं। संभवतः डोडा में भी परमारों का शासन हो और वहां से निकास के कारण डोडा के परमार, डोडा या डोडिया परमार कहलाते हैं। पर यह निश्चित है कि डोड या डोडिया परमारों की उत्पत्ति विक्रमी संवत की 9वीं सदी से हो चुकी थी।

डोडिया परमारों का आदि स्थान गुजरात था। बड़ौदा के आस-पास 9वीं सदी में इनका यहां निवास था। गुजरात से ही डोडिया राजपूत मध्यप्रदेश और बुंदेलखंड पहुंचे। वि. सं. 1075 में जब महमूद गजनवी का मथुरा पर आक्रमण हुआ तब मथुरा हरदत्त डोडिया के अधिकार में था। वि. सं. 1233 के शिलालेख में भी हरदत्त डोडिया का नाम अंकित है। बारण (बुन्देलखण्ड) पर डोडियों का अधिकार वि. सं. 1075 से पूर्व हो चुका था और इसके बाद वि. सं. 1233 तक इनके शासन की गवाही यह शिलालेख देता है। उत्तरप्रदेश में मुरादाबाद, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मेरठ, अलीगढ़, बांदा, आदि जिलों में तथा मध्यप्रदेश में पन्ना व सामर जिलों में डोडिया राजपूत निवास करते हैं। गुजरात के बड़ौदा के डोडिया राजपूतों के वंशजों के नाम अन्य कई जगहों से भी प्राप्त होते हैं।

पृथ्वीराज द्वितीय के मामा किल्हण गुहिल के हांसी का किला डोड वंशी वल्ह के पुत्र लक्ष्मण की अध्यक्षता में तैयार करवाया, ऐसा उल्लेख वि. सं. 1224 माघ सुदी 7 के हांसी शिलालेख में पाया जाता है। आंवलदा गांव (जहाजपुर मेवाड़) के शिलालेख से डोडराव सिंह राव का अस्तित्व पाया जाता है। गागरोन (कोटा) पर पहले डोडियों का अधिकार था, बाद में 13वीं शताब्दी में यह किला खींची चौहानों के अधिकार में चला गया।

गुजरात में जुनागढ़ के पास बणथली, डोडिया आवमाल का ठिकाना था। डोडिया आवमाल के पुत्र शार्दुलसिंह ने मालवा में शार्दुलगढ़ ठिकाना कायम किया। अलाउद्दीन खिलजी ने जब 1303 में चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया तब शार्दुलसिंह के छठे वंशज जसकर्ण वीरगति को प्राप्त हुए।

महाराणा लाखा की माता द्वारिका तीर्थ यात्रा को गई थी, तब उन पर तथा उनके शाही लवामजे पर डकैतों ने आक्रमण कर दिया, तब राव सीहा डोडिया क्षत्रिय धर्म निभाते हुए, डकैतों पर टूट पड़े और सभी डकैतों को मार गिराया और अंत में स्वयं भी वीरगति को प्राप्त हुए। महाराणा लाखा (मेवाड़) सीहा डोडिया के पराक्रम से प्रसन्न हुए और उनकी वीरगति होने पर राणा लाखा ने शोक प्रकट किया और राव सीहा डोडिया के दो पुत्र कालू और धवल को राणा लाखा ने मेवाड़ बुलाया और रतनगढ़, नन्दराय, मसूदा आदि की जागीर दी। धवल डोडिया के वंशजों ने मेवाड़ के कई युद्धों में भाग लेकर मेवाड़ की रक्षा में योगदान दिया।

चित्तौड़ पर, गुजरात के बहादुरशाह ने जब दूसरी बार आक्रमण किया तब भाण डोडिया शत्रु सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। राणा उदयसिंह के समय हाजीखां के साथ हुए युद्ध में भाण का पोता भीम डोडिया घायल हो गए, परंतु काफी सारे दुश्मनों को खत्म भी किया। अकबर द्वारा चित्तौड़ पर चढ़ाई के समय भाण डोडिया का पुत्र सांडा डोडिया ने वीरगति प्राप्त की। सांडा डोडिया का पुत्र भीमसिंह डोडिया हल्दीघाटी के युद्ध में अद्भुत वीरता दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जगतसिंह द्वितीय के समय जयसिंह डोडिया के प्रपौत्र सरदार सिंह को लावा का ठिकाना मिला। लावा ठिकाने का नाम सरदार सिंह के नाम पर सरदारगढ़ नाम हुआ। यह सरदारगढ़ डोडियों का मेवाड़ में ठिकाना था। डोडिया राजपूतों का शार्दुलगढ़ का ठिकाना था, इसके अलावा इनका एक ठिकाना पिपलौदा था। पुरावत डोडियों का मध्यप्रदेश में चांपानेर तथा सादावत डोडियों का मध्यप्रदेश में मुण्डावल मुख्य ठिकाना था।

Post a Comment

0 Comments