Bappa Rawal History
महान विजेता बापा रावल - दशों दिशाओं में विजय पताका फहराने वाले राजपूत योद्धा
महान विजेता बापा रावल - दशों दिशाओं में विजय पताका फहराने वाले राजपूत योद्धा
"अमरकाव्यम्" में बताया गया है कि - बापा रावल ने मालवा, गुजरात, आबू, सौराष्ट्र, नागौर, मारवाड़ और सिन्धु तटीय क्षेत्रों को बलपूर्वक जीत कर उन्हें अपने राज्य में सम्मिलित किया। बापा ने गंगा सागर संगम (पूर्व में), सेतुबंध रामेश्वर (दक्षिण में), द्वारिका, सिन्धु (उत्तर-पश्चिम में), हिंदूकुश एवं गजनी (उत्तर में) तथा श्रीनगर (कश्मीर) के नरेशों को जीतकर अपने राज्य का खूब विस्तार किया था।
"राजविलास" में वर्णन है कि बापा रावल ने कच्छ पर आक्रमण कर अपने पूर्वजों की राजधानी वल्हिका (वल्लभीपुर) को जीता था। साथ ही आठ-दस अन्य प्रदेशों को जीतकर अपनी राज्य की सीमा में मिलाया था।
"राणा रासो" में बताया गया है कि हारीत ऋषि और एकलिंग जी के आशीर्वाद से बापा रावल ने तलवार पकड़ी और दशों दिशाओं में विजय प्राप्त करने के लिए दौड़ने लगे। सीमा पार के शत्रुओं को मारकर बापा ने उनके राज्यों पर अपना अधिकार कर लिया।
"खुम्माण रासो" में बापा की विजय यात्रा में बताया गया है कि - मगध, अंग, पांचाल, सिन्धु, सौवीर, सपालदक्ष, बंग, कलिंग, विराट, काशी, साकेत, कुरूक्षेत्र, वत्सदेश, नौहर, मध्यप्रदेश, गुर्जरदेश, कुशावर्त, नागक्षेत्र, विदेह, नवद्वीप, मलय से लगाकर शोरसेन आदि प्रदेशों को जीतकर अपने अधीन किया था।
"भीम विलास" में विस्तार से बापा रावल के बारे में वर्णन किया गया है कि पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों दिशाओं के प्रदेशों पर बापा रावल ने विजय प्राप्त की और इसके साथ ही नेपाल, लंका व खुरासान तक बापा रावल ने अपनी विजय पताका फहराई।
"चित्तौड़ उदयपुर पाटनामा" में लिखा है कि बापा रावल ने गजनी के बादशाह अलाईरम को परास्त किया और अपने चौथे पुत्र मोहणसी को नेपाल की गद्दी पर बैठाया। बापा रावल ने 319 मुस्लिम औरतों से विवाह किया था। इनसे जो पुत्र हुए उनमें बड़े पुत्र जमरदीन को काबुल, दूसरे पुत्र यहमदनूर को तुर्कीस्तान तथा तीसरे पुत्र तीमरबेग को ईरान का राज्य दिया। कुछ पुत्रों को नेपाल की ओर भेज दिया।
कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है कि बापा ने गजनी पर आक्रमण किया और वहां के बादशाह अलाईरम (सलीम) को गद्दी से उतारकर सूर्यवंशी सामंत को वहां पर स्थापित किया था। कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है कि बापा रावल अपने अंतिम दिनों में खुरासान चले गए थे, जिससे ज्ञात होता है कि खुरासान भी बापा के अधिकार क्षेत्र में था। रामनाथ रतनू ने अपने राजस्थान इतिहास में लिखा है कि बापा रावल छब्बीस वर्ष तक चित्तौड़ पर राज्य करने के बाद विक्रम संवत् 810 में खुरासान चले गए। बापा रावल ने कंधार, कश्मीर, ईरान, ईराक तथा तूरान के शासकों को परास्त कर उनकी पुत्रियों से विवाह किया था।
पश्चिम राजपूताने की सीमा पर अरब आक्रमण के सन्दर्भ में आस्ट्रेलियन लेखक इयान अॉस्टिले ने लिखा है कि बापा रावल ने परमारों, जैसलमेर तथा अजमेर के शासकों के सहयोग से अरब आक्रमणकारियों को सिन्ध के उस पार खदेड़ कर लाहौर को मुक्त कराया। बापा रावल ने परशिया पर विजय प्राप्त की और वहां की राजकुमारियों से विवाह किया और दक्षिण की ओर बढ़कर वल्लभीपुर पर पुन: अधिकार करके अपने पूर्वजों के राज्यों को पुनः स्थापित किया। इयान अॉस्टिले ने आगे लिखा है कि यदि बापा रावल अपने बाहुबल से अरब आक्रमणकारियों को भारत से बाहर नहीं खदेड़ते तो सम्पूर्ण भारत मुस्लिम राष्ट्र में परिवर्तित हो चुका होता।
वैसे तत्कालीन समय में मुस्लिम प्रभाव को भारत में रोकने में बापा का महत्त्वपूर्ण योगदान था। बापा रावल ने तत्कालीन भारतीय राज्यों का संयुक्त मोर्चे का गठन किया, जिनमें मुख्यत: उज्जैन के प्रथम नागभट्ट प्रतिहार, सांभर व अजमेर के शासक अजयराज, हाड़ौती के धवल व तत्कालीन भाटी राज्य के शासक देवराज भाटी के साथ व अन्य भारतीय शासकों का संयुक्त मोर्चा बापा रावल के नेतृत्व में गठित हुआ। मेवाड़ की ख्यातों में भी इस संयुक्त सेना का जिक्र मिलता है।
यह सत्य है कि बापा रावल के पास तत्कालीन समय की आवश्यकतानुसार सुसज्जित विशाल सेना थी, जिसका नेतृत्व वह स्वयं करते थे, इस सेना की संख्या की बात करें तो 12 लाख 90 हजार सेना की संख्या बताई जाती है। बापा के शासनकाल में पश्चिमी भारत को अरब आक्रमणों से लगातार युद्ध करना पड़ा। बापा रावल ने अपनी सैन्य कुशलता से अरब खलीफा शक्ति को भारत से ही नहीं बल्कि मध्य एशिया तक खदेड़ कर भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा की। ऐसा माना जाता है कि अरब खलीफाओं के सैनिकों ने हिन्दू कन्याओं से विवाह कर उन्हें अपने धर्म में परिवर्तित किया। उन खलीफाओं के सैनिकों को पराजित कर बापा रावल ने उन अरब कन्याओं को पुनः हिन्दू धर्म में संस्कारित कर समाज में पुनः स्थान देने का सराहनीय कार्य किया। बापा रावल के इस साहसिक कार्य का वर्णन अन्य ग्रन्थों में भी प्रर्याप्त मिलता है। बापा रावल ने ईरान और खुरासान को जीतकर वहां की राजकुमारियों से विवाह किए थे। बापा रावल के बारे में अरब ग्रंथों में भी वर्णन मिलता है। अरब के "फतुहुल बलदान" ग्रंथ के लेखक ने लिखा है कि बापा रावल से अरब सेना को परास्त होकर भागना पड़ा। अरब सेना का भारत में रहना खतरा भरा होने से, उन्होंने दरिया पार सुरक्षित स्थान पर नगरों को बसाया। अरबों के कारण जहां भारत में जहां मूर्तिपूजा होनी बंद हो गई थी, वहां पर बापा के प्रभाव से पुनः मूर्तिपूजा होने लगी। इस वर्णन से ज्ञात होता है कि अरबों ने भारतीय भू-भाग पर अधिकार कर वहां धर्म परिवर्तन करवाया, जिसे बापा ने अपनी विजय यात्रा से विजित कर पुनः हिन्दू धर्म में परिवर्तित करवाया।
यह सत्य है कि बापा रावल ने मेवाड़ राज्य की सीमा को ईरान, ईराक व खुरासान तक फैलाया। तो इस प्रकार बापा रावल ने अपना नाम इतिहास में अमर कर दिया। फिर भी इस महान पराक्रमी योद्धा और अपने तत्कालीन समय का विश्व विजेता बापा रावल को हमारी पाठ्य-पुस्तकों में जगह नहीं मिल पाई है और ना ही इस योद्धा को भारत के लोगों के हृदय में जगह मिल पाई है।
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