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नर्बद जी राठौड़ - एक सच्चे राजपूत और वीर तथा त्यागी क्षत्रिय
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| नर्बद जी राठौड़ |
नर्बद जी राठौड़ - एक सच्चे राजपूत
मारवाड़ राज्य की प्राचीन राजधानी मंडोर थी। मंडोर के शासक सत्ता राठौड़ थे। सत्ता राठौड़ के सबसे बड़े पुत्र नर्बद राठौड़ थे। नर्बद राठौड़ बड़े ही शूरवीर राजपूत योद्धा थे। अपने पिता सत्ता राठौड़ के समय ही उन्होंने अपने राज्य का बहुत विस्तार कर लिया था। नर्बद राठौड़ की बढ़ती हुई लोकप्रियता के कारण से उसके भाई-बंधु उनसे ईर्ष्या रखने लगे। सत्ता राठौड़ की मृत्यु के बाद राजगद्दी के कई दावेदार खड़े हो गए। नर्बद राठौड़ के अपने सगे भाई भी उनके विरुद्ध खड़े हो गए थे, परन्तु नर्बद राठौड़ एक वीर-प्रकृति के पुरूष थे। उसे राज्य का मोह नहीं था, वह तो अपने आपको राज्य का सेवक मानता था। नर्बद राठौड़ ने जब अपने सगे भाईयों को गद्दी के लिए झगड़ते हुए देखा तो वह राज्य छोड़कर चले गए। बहुत दिनों तक वह इधर-उधर भटकते रहे। जब नर्बद राठौड़ द्वारा राज्य छोड़ने का समाचार मेवाड़ के महाराणा कुम्भा को मिला तो उन्होंने नर्बद जी को मेवाड़ बुला लिया। राणा कुम्भा, नर्बद राठौड़ की बहादुरी एवं त्याग-भावना से बिल्कुल परिचित थे। उन्होंने नर्बद जी को मेवाड़ में एक अच्छी जागीर देकर सम्मानित किया। नर्बद जी ने भी उसके बदले में कई युद्धों में राणा कुम्भा को बहुत सहयोग दिया। दिन-प्रतिदिन नर्बद राठौड़ की प्रसिद्धि बढ़ती गई। बहुत जल्द ही नर्बद जी महाराणा का एक खास और विश्वासपात्र सामंत एवं मित्र बन गए। एक दिन चित्तौड़ में महाराणा का दरबार लगा हुआ था। मेवाड़ के सभी सामंत व सरदार उपस्थित थे, केवल नर्बद राठौड़ ही उपस्थित नहीं थे। जब महाराणा कुम्भा ने नर्बद जी का स्थान खाली देखा तो उन्होंने पूछा - "आज राव नर्बद जी को क्या हो गया?" तब एक सामंत ने खड़े होकर कहा कि, "हुजूर, आज उनकी तबीयत ठीक नहीं है।" महाराणा कुम्भा ने उदास स्वर में पूछा, "क्यों क्या हुआ नर्बद जी को।" सामंत ने कहा कि,"कल रात से उन्हें बुखार है, अन्नदाता।" महाराणा कुम्भा ने आशंका प्रकट करते हुए पूछा की कोई और बात तो नहीं है? तभी दूसरे सामंत ने खड़े होकर कहा कि, "नहीं हुजूर, नर्बद जी एक सच्चा राजपूत हैं, अगर वह स्वस्थ होते, तो वह यहां जरूर उपस्थित होते"। सामंत की यह बात सुनकर महाराणा कुम्भा ने सामंत से वापस तुरंत पूछा कि, "नर्बद राठौड़ में ऐसा क्या खास गुण है?" सामंत ने वापस खड़े होकर कहा कि, "हुजूर, आप जो चाहें परीक्षा ले सकते हैं, वह हर स्थिति में खरा उतरेंगे।" महाराणा कुम्भा ने सामंत से कहा कि क्या आपको पूरा विश्वास है नर्बद जी पर? सामंत ने कहा जी हुजूर, पूरा विश्वास है। महाराणा कुम्भा ने कहा कि- तो फिर हम एक चीज मंगवाते हैं, क्या नर्बद जी वे देंगे? सामंत ने कहा कि- अवश्य देंगे, अन्नदाता, जिस व्यक्ति ने अपना राज हंसते-हंसते दे दिया, वह आप के लिए क्या नहीं कर सकता हैं। तब महाराणा कुम्भा ने कहा कि अच्छा तो फिर हम नाई को भेजकर उनकी आंखें मंगवाते हैं, देखते हैं, आपका विश्वास कितना सच्चा हैं? सामंत ने गर्व के साथ कहा, "जो हुकूम"।
नर्बद जी की हवेली महाराणा के महलों के पास ही थी। नाई को नर्बद जी राठौड़ के पास जाकर वापस आने में बिल्कुल भी देर नहीं लगी। ज्यों ही दरबार में नाई ने प्रवेश किया, महाराणा अचंभित हो गए। क्योंकि नाई इतनी जल्दी लौटकर वापस आ जाएगा, राणा को यह उम्मीद नहीं थी। नाई के हाथों में कपड़े से ढका एक थाल था। दरबार में विराजमान सबकी नजरें उस थाल पर जा अटकी। दरबार में एकदम सन्नाटा छाया हुआ था और मानो सबकी सांसों पर ताला लग गया हो। नाई के हाथ में थाल देखकर राणा कुम्भा का चेहरा उदास हो गया। नाई ने महाराणा के सम्मुख उपस्थित होकर झुकी हुई मुद्रा में थाल को आगे बढ़ा दिया। महाराणा ने अपने कांपते हुए हाथों से कपड़ा उठाया। नर्बद राठौड़ की आंखें थाल में देखकर राणा कुम्भा चौंक गए। काफी समय तक महाराणा कुम्भा के मुख से एक शब्द भी नहीं निकल पाया और वे बिना कुछ बोले सीधा उठकर नर्बद जी की हवेली की ओर चल पड़े। नर्बद राठौड़ चारपाई पर लेटे थे, उनकी आंखों पर कपड़ा पड़ा था, पास में दो सेवक थे। महाराणा को प्रवेश करते हुए देखकर एक सेवक ने नर्बद जी के कान में राणा कुम्भा के आने का समाचार दिया। नर्बद ने उठने का प्रयास किया। किन्तु उसी बीच महाराणा ने उठते हुए नर्बद जी को अपने हाथों से बिस्तर पर सुलाया और आंखों में आंसू भरते हुए बोले- "रावजी, आप जैसे महान त्यागी की परीक्षा लेकर मैंने बहुत बड़ी भूल कर दी। मेवाड़ की धरती आपको पाकर आज धन्य हो गई है, निश्चित ही आप एक सच्चे राजपूत हैं। धन्य है वह क्षत्राणी, जिसने आप जैसे वीर को जन्म दिया।" नर्बद जी राठौड़ के इस वीर कार्य के लिए महाराणा कुम्भा ने एक फरमान जारी कर नर्बद जी की जागीर में सौ गांवों की वृद्धि कर दी।
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