history of jaisalmer. Rawal Dudaji Bhati History
जैसलमेर के पहले साके के बाद दूदाजी (दुर्जनशाल) भाटी ने ऐसे किया था पुनः किले पर अधिकार
हमने आपको हमारी पिछली पोस्ट में बताया ही था कि कैसे जैसलमेर और भारत के स्वाभिमान की रक्षार्थ भाटी राजपूतों ने अपने प्राण हंसते-हंसते न्यौछावर कर दिए और सम्मानजनक साका किया। अब हम आपको बतायेंगे की साके के बाद क्या हुआ और भाटियों ने वापस जैसलमेर पर कैसे अधिकार किया।
जैसलमेर के साका होने के बाद और भाटियों के बलिदान के बाद, जैसलमेर पर खिलजी सेना का अधिकार हो गया था। जैसलमेर पर अधिकार करने के पश्चात खिलजी सेना ने जैसलमेर और उसके अनेक गांवों को निर्दयता से लूटा और जैसलमेर की जनता पर अनेक अत्याचार किए। यह बात दूदाजी जसोड़ भाटी को पता चली। जैसलमेर के पहले साका से पहले दूदाजी जसोड़ और उनके छोटे भाई तिलोकसी, जैसलमेर का किला त्यागकर, दूदाजी जसोड़ भाटी के ससुराल थार-पारकर में चले गए थे। वहां रहकर यह दोनों लूट-खसोट और डकैतियां करते थे। जैसलमेर के किले पर रहने वाले मुसलमानों को भी उन्होंने अपना लक्ष्य बनाया। मुसलमानों को परेशान करने के लिए पास के देहात के गांवों को उजाड़ दिया, उनके लिए खाद्य सामग्री लाने वाले कारवों को लूटने लग गये और दिल्ली से आने वाली डाक में विघ्न डालने लगे। दूदाजी जसोड़ भाटी से पिटे हुए और सताए हुए मुसलमानों को किले में रूककर कोई लाभ दिखाई नहीं दे रहा था, इसलिए वह चार साल बाद किला छोड़ कर और किले के द्वार को ताला लगाकर अपनी राजधानी दिल्ली को चले गए।
कहते हैं कि भाटियों और राठौड़ों के आपस में खून-खराबा शुरू करने के उद्देश्य से मुसलमान जैसलमेर के किले की चाबियां मेहवा के मल्लीनाथ राठौड़ को सौंप गये। मुसलमानों ने मल्लीनाथ राठौड़ को कहा कि हम तो किले को ताला लगाकर दिल्ली वापस जा रहे हैं। अब किले का कोई रखवाला नहीं है। इस सुअवसर का लाभ उठाएं और किले पर अपना अधिकार स्थापित कर लें। इस सुअवसर का लाभ उठाने के लिए मल्लीनाथ जी राठौड़ ने सात सौ बेलगाड़ों में खाद्य-सामग्री भरकर मेहवा से जैसलमेर रवाना किया और अपने पुत्र जगमाल राठौड़ से कहा कि गाड़ों के साथ जाकर जैसलमेर किले पर अधिकार कर लें। जगमाल जी राठौड़ अपने पिता की आदेश का पालन करने के लिए बैलगाड़ों को साथ लेकर जैसलमेर रवाना हुए, गर्मी का मौसम था, और धीरे-धीरे उनका काफिला जैसलमेर की ओर बढ़ने लगे। तब घोड़े पर सवार जगमाल राठौड़ को दोपहर की गर्मी बड़ी भारी लगने लगी, इसलिए जैसलमेर से पांच कोस पहले "भू" नामक गांव में विश्राम करने के लिए ठहर गये, जहां उनको नींद की झपकी आ गई। उस गांव के रहने वाले भाटियों के चारण आसराव को पता लगा कि जगमाल राठौड़ और उसका काफिला जैसलमेर के किले पर अधिकार करने जा रहे हैं।
तब अपने देशप्रेम के चलते आसराव चारण वहां से निकल कर जल्दी से थार-पारकर पहुंचे, और वहां आसराव चारण ने दूदाजी जसोड़ भाटी और तिलोकसी को आने वाले भयानक संकट से अवगत कराया। अल्पावधि में जितने भी सहयोगी मिल सके, उन्हें साथ लेकर दूदाजी जसोड़ भाटी और तिलोकसी ने जल्दी से जैसलमेर की राह पकड़ी। आडे़-तिरछे छोटे मार्गों से वह यत्नपूर्वक चलते रहे। सौभाग्य से मार्ग में संयोगवश उन्हें तोला पाहू भाटी मिल गया, जिनके साथ एक सौ चालीस घुड़सवार सैनिक थे। दूदाजी जसोड़ भाटी और तिलोकसी ने उन्हें अपने काफिले में शामिल कर लिया ताकि उनकी सैनिकों की संख्या में वृद्धि हो जाए। सूर्यास्त होने से पहले ही दूदाजी भाटी और उनका काफिला जैसलमेर पहुंच गया था। जैसलमेर पहुंच कर उन्होंने किले के द्वार पर लगें ताले तोड़ कर किले के अंदर प्रवेश किया और उन्होंने महत्त्वपूर्ण चौकियों पर अपने सैनिक तैनात कर दिये। जैसलमेर पर अधिकार करने के पश्चात उन्होंने अपने संबंधी जगमाल राठौड़ को संदेश भिजवाया, जो भू गांव से जैसलमेर के मार्ग में थे, "जगमाल जी राठौड़ आप जैसलमेर आने का कष्ट ना करें, क्योंकि जसोड़ और पाहू भाटियों ने मिलकर अपनी बपौती जैसलमेर राज्य पर अधिकार कर लिया है।" जिस प्रकार जगमाल जी राठौड़ ने सरलता से किले पर अधिकार कर लेने की योजना बनाई थी, वह सब धरी की धरी रह गई।
तो इस तरह भाटी राजपूतों ने अपने जैसलमेर राज्य पर वापस अधिकार किया। अब जैसे ही दूदाजी भाटी ने जैसलमेर पर अधिकार किया, वैसे ही यह शुभ समाचार नगरों, गांवों में दूर-दूर तक पहुंच गया। जैसलमेर की प्रजा हर्षोल्लास से भाटियों द्वारा पुनः सत्ता संभाल लेने का अभिवादन करने इकट्ठी होने लगी। चारों ओर खुशियां मनाई जाने लगी और लोग एक-दूसरे को बधाइयां देने लगे। दूदाजी जसोड़ भाटी को रावल मूलराज का उत्तराधिकारी होने की मान्यता मिल गई। जैसलमेर के सिरायती ठिकानेदार तथा दौलड़ी व इकलड़ी ठिकानेदारों ने उन्हें शासकीय सम्मान-स्वरूप नजरें पेश की और उनके प्रति निष्ठावान बने रहने की शपथें ली। रावल मूलराज के प्राणोत्सर्ग के चार वर्ष के पश्चात दूदाजी जसोड़ भाटी जैसलमेर की राजगद्दी पर बैठे और जैसलमेर के नये रावल घोषित किए गए। तो इस प्रकार दूदाजी जसोड़ भाटी को कुलदेवी स्वांगिया माता और भगवान श्री कृष्ण के आशीर्वाद और अनुकंपा से जैसलमेर का राज्य और राजगद्दी प्राप्त हो गई।
history of jaisalmer. Rawal Dudaji Bhati History
जैसलमेर का इतिहास
जैसलमेर का धर्म युद्ध
जैसलमेर का पहला शाका
जैसलमेर का पहला साका कब हुआ?
जैसलमेर के ढाई साके


Post a Comment
0 Comments