चावड़ा क्षत्रिय राजपूतों का संपूर्ण इतिहास - Chavda Kshatriya Rajput History


चावड़ा क्षत्रिय राजपूतों का संपूर्ण इतिहास - Chavda Kshatriya Rajput History

चावड़ा क्षत्रिय राजपूत भी 36 (छत्तीस) राजपूत राजकुलों में से एक है। चावड़ा राजपूत परंपरा में चंद्रवंशी माने जाते हैं। चावड़ा क्षत्रिय राजपूतों को संस्कृत के लेखों में चाप, चापोत्कट, चाबोटक लिखा गया है। कई विदेशी इतिहासकारों व भारतीयों इतिहासकारों ने चावड़ों को गुर्जर बताने की चेष्टा की, लेकिन कलचूरी संवत् 490, यानि विक्रमी संवत् 796 के सोलंकी पुलकेशी के दानपत्र में गुर्जरों और चावोटक (चावड़ों) को अलग अलग बताया गया है। ("तरलतरतारतार, वारिदारितोदित सैन्धबकच्छैल्ल सोराष्ट्र चावोटकमौर्यगुर्जरादिराज्ये") । इससे साफ हो जाता है कि गुर्जर जाति और चावड़ा अलग अलग थे। विक्रम संवत् 697 में चीनी यात्री हेनच्यांग भीनमाल (राजस्थान) आया, भीनमाल में उस समय चावड़ा राजपूतों का राज था, हेनच्यांग ने अपनी पुस्तक में चावड़ों (चावोटकों) को क्षत्रिय ही लिखा है।

चावोटक धरणीवराह के विक्रमी संवत् 901 के दानपत्र में लिखा है कि भगवान शंकर ने पृथ्वी की रक्षा के लिए अपनी चाप(धनुष) से योग्य पुरुष उत्पन्न किया जो चाप कहलाया, इसी चाप के वंशज चापरा या चावड़ा कहलाए। इस दानपत्र की भाषा चमत्कारिक है, जिसका अर्थ यह है कि कोई चाप नामक क्षत्रिय था, जो शिव का प्रचंड भक्त और तेज धनुर्धारी था, इसी चाप क्षत्रिय के वंशज चापरा, चावरा, चावड़ा कहलाए।

अब चावड़ा क्षत्रियों का प्राचीन क्षत्रियों से क्या संबंध है तथा यह चंद्रवंशी कैसे हैं, आइये जानते हैं । शिलालेख और ताम्रपत्रों में चावड़ा राजपूत, परमारों की खांप (शाखा) मानी जाती है। एक छप्पय भी इस बात की पुष्टि करता है:-

प्रथम चाल चण्डेल, शब्दगण सेष सुणायो ।
अरबद दीधी आण, होम अतर देश आयो ।।
परवरियों परमार बास भिनमाल बसायो ।
नवकोट कर नेत्र खेत्र जागणो खसायो ।।
भोगवे भोग शत्रुत्रणा, रणायत तण राखियों रंग ।
वररा कंवरे वासियो, अणहलपुर दुरंग ।।

इसका भावार्थ यह है कि परमारों का पहले आबू पर राज्य था, उनके नौ कोट थे। वनराज चावड़ा ने अणहलपुरा नामक दशवास दुर्ग स्थापित किया। प्राचीन परमारों में चाप नामक व्यक्ति हुआ, जिसके नाम से चाप के वंशजों की स्वतंत्र खांप हुई‌। चाप के वंशज होने के कारण यह चापरा या चावड़ा कहलाए। वख्तसाह ने अपने ग्रंथ बुद्धिविलास में चावड़ों को चंद्रवंशी क्षत्रिय लिखा है ("इदक सोमवंसकुल चावड़ा" - बुद्धिविलास पदमदर पाठक पृ. 92)। परमार(पंवार) राजपूत भी हमारी जानकारी में मूलतः चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं। आबू में हुए होम में बैठने के कारण यह अग्निवंशी कहलाए, पर मूलतः यह चंद्रवंशी ही है।

चावड़ों के प्रमुख भीनमाल, राजस्थान में राज्य था, और अणहिलवाड़ा, गुजरात में राज्य था। गुजरात में आज भी काफी चावड़ा राजपूत निवास करते हैं। राजस्थान व मध्यप्रदेश में काफी स्थानों पर चावड़ा राजपूत हैं। इनके अलावा अणहिलवाड़ा गुजरात के प्रसिद्ध राजा वनराज चावड़ा के वंशज उत्तरप्रदेश में खीरी, हरदोई, सीतापुर, बाराबंकी आदि स्थानों पर निवास करते हैं, और यह अहवान चावड़ा बोले जाते हैं। अहवान चावड़ों की कुवरअहवान, अहवान खास व होलचा शाखाएं हैं। होलचा चावड़ा मारवाड़ में भी निवास करते हैं। गुजरात में मणासा, बरसोड़ा, महीकांठा, भीलोड़िया, रामपुरा, रेवीकांठटा, आकड़िया चावड़ा राजपूतों के ठिकाने हैं, इसके अलावा मेवाड़ (राजस्थान) में कलवड़वास चावड़ों का ठिकाना था।

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