देवती के बडग़ुर्जर राजपूत राजा अशोकमल (ईसरदास)- सिर कटने के बाद भी कई घंटों तक मुगलों से लड़ते रहे

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राजा अशोकमल (ईसरदास)

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फेटा के जुझारजी राजा अशोकमल (ईसरदास)


देवती के बडग़ुर्जर राजपूत राजा कुम्भाजी के दूसरे पुत्र अशोकमल थे। राजा अशोकमल अपने पिता राजा कुम्भाजी के बाद देवती के राजा बने, राजा अशोकमल को ईसरादास के नाम से भी जाना जाता है। राजा कुम्भा ने आमेर नरेश पृथ्वीसिंह से अपनी पुत्री भगवती का विवाह किया हुआ था। राजा अशोकमल यानि ईसरादास  का जयपुर नरेश मानसिंह के साथ किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया था और उधर सम्राट अकबर ने ईसरदास से डौला मांग लिया, पर राजा अशोकमल (ईसरदास) ने अकबर को डौला नहीं दिया और ना ही मुगलों से कोई समझौता किया। राजा अशोकमल द्वारा अकबर को डौला न देने पर, अकबर ने राजा अशोकमल और उनके राज्य देवती पर आक्रमण कर दिया और दूसरी तरफ जयपुर नरेश मानसिंह भी अपनी सेना लेकर देवती पर चढ़ आए, अकबर की सहायता के लिए। इधर देवती नरेश राजा अशोकमल ने मुगलों से कोई समझौता न करते हुए शत्रु के आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हो गये, उन्होंने अपनी सेना को तैयार किया और 1557 ईस्वी को बडग़ुर्जर राजपूत राजा अशोकमल (ईसरदास) ने युद्ध करते हुए देवती के पाण्डूपोल के पास मुगल सेना को रोक दिया। दोनों तरफ से भयंकर युद्ध हुआ। मुगल सेना विशाल होते हुए भी राजा अशोकमल (ईसरदास) ने मुगलों पर इतना भयंकर आक्रमण किया कि मुगलों को तीतर-बितर कर दिया और भारी संख्या में अपनी तलवार से मुगलों को मौत के घाट उतार दिया। अन्त में मुगलों ने छल कपट से काम लेते हुए राजा अशोकमल पर धोखे से वार करके उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। राजा अशोकमल (ईसरदास) सिर कटने के बाद भी कई घंटों तक मुगलों से लड़ते रहे और वही पर वीरगति को प्राप्त हो गए। जहां पर राजा अशोकमल ने वीरगति प्राप्त की वहां पर उनका छोटा-सा स्थान बना हुआ है, जिसको फेटा के जुझारजी के नाम से लोग पूजते हैं। ज्येष्ठ महिने के शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार और शनिवार को यहां मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए जुझारजी के धोक देने आते हैं।राजा अशोकमल (ईसरदास) के युद्ध में वीरगति प्राप्त करने का समाचार जब देवती में पहुंचा तब क्षत्राणियों ने जौहर किया और अपने कुल व क्षात्रधर्म के यश को बनाए रखने के लिए जलती ज्वाला में भस्मीभूत हो गई। इस युद्ध में राजा अशोकमल (ईसरदास) की वीरता के कारण उनकी चारों दिशाओं में बड़ी ख्याति हुई। जन सामान्य में एक दोहा अब भी बड़े गर्व से गाया जाता है:-
दाग न लाग्यो देवती, ईसर गयो अदग्ग।।

अर्थात् राजा अशोकमल (ईसरदास) के कारण देवती को दाग नहीं लगा यानि मुगलों से किसी प्रकार का समझौता नही किया और स्वयं अदग्ग(किसी प्रकार का दाग नहीं लगा) रहते हुए जुझार हुए। आज भी राजा अशोकमल (ईसरदास) का मंदिर हजारों लोगों की श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है।राजा अशोकमल के युद्ध में वीरगति प्राप्त होने के बाद मुगल सेना देवती पर चढ़ आई और देवती को खूब लुटा और वहां भयंकर कत्ले-आम किया। इस प्रकार देवती को पूर्णतया नष्ट कर दिया गया। पुरानी देवती पहाड़ के ऊपर बसी हुई थी, नई देवती पहाड़ के नीचे बसी हुई है। अलवर के राजगढ़ क्षेत्र से टहला रोड पर 25 किलोमीटर आगे देवती आता है, अब यह एक छोटा-सा गांव मात्र ही है।

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1 Comments

  1. ese veer yodhao ka etihaas rajpoot jaati main atulniya hai

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