Brave Rajput
अचलदास जी खींची - एक ऐसा महान योद्धा जिसका सिर कटने के बाद भी धड़ युद्ध लड़ता रहा
राजपूताने की धरती, वीरों की धरती रही हैं। इस धरती के कण कण में वीर योद्धा समाए हुए हैं। राजपूताने की धरती पर ऐसे सैंकड़ों लाखों राजपूत वीर योद्धाओं ने जन्म लिया है, जो युद्धभूमि में सर कटने के बाद भी युद्ध मैदान में दुश्मनों के साथ युद्ध करते रहें। ऐसे ही एक राजपूत वीर योद्धा हुए गागरोण राज्य के अचलदास जी खींची। खींची राजपूत चौहानों की एक प्रमुख शाखा हैं। विक्रमी संवत् 1480 तद्नुसार 1423 ई. में होशंगशाह ने खींची-चौहानों के गागरोण राज्य पर आक्रमण किया। होशंगशाह एक महत्त्वकांक्षी सुल्तान था, सुल्तान का गागरोण पर आक्रमण करने का उद्देश्य वहां की खींची चौहान शाखा को नष्ट करके अपना प्रभुत्व स्थापित करना था। गागरोण पर उस समय अचलदास जी खींची का राज था, जो बड़े ही स्वाभिमानी और गर्वीले वीर थे। होशंगशाह द्वारा गागरोण पर आक्रमण करने पर अचलदास जी खींची बहुत क्रोधित हो गए, और उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि सुल्तान होशंगशाह यहां चक्रवर्ती चौहानों से युद्ध करने आया तो है, लेकिन वह और उसकी सेना यहां से जिन्दा लौट नहीं पायेगी। होशंगशाह ने गागरोण के दुर्ग का घेरा डाल दिया और उसने दुर्ग को अपने अधिकार में करने के लिए कई कोशिशें की, परन्तु सुल्तान नाकाम हो गया। तब उसने एक धोबी के साथ मिलकर गागरोण के जलाशय में गोमांस डलवा दिया और जल को दूषित कर दिया। जिसके फलस्वरूप अचलदास जी ने जल को अपवित्र समझकर तथा जीने का अन्य कोई विकल्प न देखकर अचलदास जी ने केसरिया करने का निश्चय कर लिया। केसरिया करने से पहले रानियों और अन्य क्षत्राणियों ने जौहर किया, और इसके बाद अचलदास जी खींची ने अपने वंश बीज की रक्षा खातिर अपने दो सबसे छोटे पुत्रों पाल्हणसी और धीरा को बहुत समझा बुझाकर दुर्ग से बाहर निकालकर महाराणा मोकल के पास मेवाड़ भेज दिया। इसके बाद अचलदास जी खींची ने दुर्ग के कपाट(दरवाजे) खुलवाकर अपने भाई बंधुओं के साथ गढ़ से नीचे उतरकर, अपनी मुंछें तानकर शत्रु-सेना पर शेर की तरह टूट पड़े। अचलदास जी खींची ने बारह दिन तक दुश्मनों के साथ बड़ी वीरता से युद्ध किया और तेरहवें दिन युद्ध करते हुए अचलदास जी खींची का सिर कट गया और सिर कटकर 'भमरपोल' के पास गिर गया, परन्तु सिर कटने के बाद भी अचलदास जी खींची का धड़ दुश्मनों के साथ युद्ध करता रहा और सुल्तान होशंगशाह और उसकी सेना पर विजयश्री प्राप्त करने के बाद अचलदास जी खींची का धड़ 'खसर-तालाब' पर जाकर शान्त हुआ, 'खसर-तालाब' जहां अचलदास जी का धड़ शांत हुआ वहां और 'भमरपोल' जहां अचलदास जी का सर कटा वहां, दोनों स्थानों पर ही स्मारक बना हुआ है और वहां अचलदास जी खींची का पूजन होता है। इस युद्ध में अचलदास जी खींची के दस बड़े पुत्र रणखेत(शहीद) हुए। परंतु अंत में जीत अचलदास जी की हुई थी। तो यह थे, अचलदास जी खींची जो सर कटने के बाद भी लड़ते रहे, और दुश्मनों पर विजय प्राप्त की।
संदर्भ ->
1. वंश भास्कर
2. अचलदास खींची री वचनिका
3. तबकाते-अकबरी
4. खिल्चीपुर की ख्यात
5. मारवाड़ रा परगना री विगत
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