Brave Rajput
वीर मेवाड़ी झाला सरदार राजराणा अज्जा जी
वीर योद्धा झाला अज्जा :-
मेवाड़ के शूरवीर योद्धा राणा सांगा के साथ, बड़ी सादड़ी (सादरी) राज राणा श्री झाला अज्जा जी सरदार की वीरता भी अविस्मरणीय है । झाला अज्जा एक वीर और पराक्रमी झाला राजपूत सरदार थे, झाला अज्जा के पास मेवाड़ में बड़ी सादड़ी (सादरी) प्रथम श्रेणी का ठिकाना था । इस ठिकाने पर झाला अज्जा का 1499 से 1527 तक यह ठिकाना उनके अधिकार में रहा । मार्च, 1527 में म्लेच्छ बाबर और मेवाड़ी सरदार राणा सांगा के बीच खानवा का युद्ध लड़ा गया । 17 मार्च, 1527 को प्रात: साढ़े नौ बजे के लगभग खानवा के मैदान में दोनों पक्षों में घमासान युद्ध शुरू हुआ । राजपूतों ने वीरतापूर्वक मुगलों पर भयंकर प्रहार किये लेकिन बाबर के तोपखाने और बंदूकों के आगे राजपूत वीर ज्यादा समय तक युद्ध नहीं कर सके, राजपूत योद्धा तोपों की भयंकर अग्नि वर्षा के आगे ठहर नहीं सके । क्योंकि उस समय राजपूतों को तोपों के बारे में जानकारी नहीं थी, और वह तोपों एवं बंदूकों से अनभिज्ञ थे । खानवा के मैदान में दोनों पक्षों में कोहराम मचा हुआ था । राजपूत मुगलों पर प्रहार कर रहे थे, और मुगल सेना बंदूकों और तोपों से राजपूतों पर प्रहार कर रही थी । इसी बीच राणा सांगा को युद्ध भूमि में, एक खिलजी मुस्लिम अधिकारी ने छुपकर तीर मार दिया, यह तीर राणा सांगा की आंख पर जा लगा और इस तीर की चोट से राणा सांगा बेहोश होकर मुर्छित अवस्था में चले गए और मेवाड़ी सेना में अफरा - तफरी मच गई । फिर राणा सांगा को घायल अवस्था में ही उनके विश्वासपात्र मेवाड़ी सरदार उन्हें युद्धक्षेत्र से बाहर लेकर चले गए । फिर राणा सांगा की सेना का नेतृत्व राजराणा झाला अज्जा ने राणा सांगा का राजकीय चिन्ह धारण कर किया । झाला अज्जा ने मेवाड़ी सेना में जोश भरा और फिर वह मुगलों पर टूट पड़े । झाला अज्जा ने वीरतापूर्वक मुगलों से मुकाबला किया परन्तु फिर भी वह लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और अपना नाम इतिहास में अमर कर लिया और यह भी कहा जाता है कि झाला अज्जा का सर युद्ध करते हुए कट गया था, फिर भी झाला अज्जा का धड़ अंत तक युद्ध करता रहा । राज राणा झाला अज्जा जी, झाला मानसिंह (राजराणा बीदाजी) के दादाजी (दादोसा) थे, झाला मानसिंह ने हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप जब घायल हो गए थे तब महाराणा प्रताप की जगह लेकर, मेवाड़ का राजकीय चिन्ह धारण कर मेवाड़ी सेना का नेतृत्व किया था और वीरतापूर्वक हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा था और अपने प्राणों का बलिदान दिया था ।
इस शूरवीर योद्धा की वीरता को सादर नमन 🙏🚩🚩
मेवाड़ के शूरवीर योद्धा राणा सांगा के साथ, बड़ी सादड़ी (सादरी) राज राणा श्री झाला अज्जा जी सरदार की वीरता भी अविस्मरणीय है । झाला अज्जा एक वीर और पराक्रमी झाला राजपूत सरदार थे, झाला अज्जा के पास मेवाड़ में बड़ी सादड़ी (सादरी) प्रथम श्रेणी का ठिकाना था । इस ठिकाने पर झाला अज्जा का 1499 से 1527 तक यह ठिकाना उनके अधिकार में रहा । मार्च, 1527 में म्लेच्छ बाबर और मेवाड़ी सरदार राणा सांगा के बीच खानवा का युद्ध लड़ा गया । 17 मार्च, 1527 को प्रात: साढ़े नौ बजे के लगभग खानवा के मैदान में दोनों पक्षों में घमासान युद्ध शुरू हुआ । राजपूतों ने वीरतापूर्वक मुगलों पर भयंकर प्रहार किये लेकिन बाबर के तोपखाने और बंदूकों के आगे राजपूत वीर ज्यादा समय तक युद्ध नहीं कर सके, राजपूत योद्धा तोपों की भयंकर अग्नि वर्षा के आगे ठहर नहीं सके । क्योंकि उस समय राजपूतों को तोपों के बारे में जानकारी नहीं थी, और वह तोपों एवं बंदूकों से अनभिज्ञ थे । खानवा के मैदान में दोनों पक्षों में कोहराम मचा हुआ था । राजपूत मुगलों पर प्रहार कर रहे थे, और मुगल सेना बंदूकों और तोपों से राजपूतों पर प्रहार कर रही थी । इसी बीच राणा सांगा को युद्ध भूमि में, एक खिलजी मुस्लिम अधिकारी ने छुपकर तीर मार दिया, यह तीर राणा सांगा की आंख पर जा लगा और इस तीर की चोट से राणा सांगा बेहोश होकर मुर्छित अवस्था में चले गए और मेवाड़ी सेना में अफरा - तफरी मच गई । फिर राणा सांगा को घायल अवस्था में ही उनके विश्वासपात्र मेवाड़ी सरदार उन्हें युद्धक्षेत्र से बाहर लेकर चले गए । फिर राणा सांगा की सेना का नेतृत्व राजराणा झाला अज्जा ने राणा सांगा का राजकीय चिन्ह धारण कर किया । झाला अज्जा ने मेवाड़ी सेना में जोश भरा और फिर वह मुगलों पर टूट पड़े । झाला अज्जा ने वीरतापूर्वक मुगलों से मुकाबला किया परन्तु फिर भी वह लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और अपना नाम इतिहास में अमर कर लिया और यह भी कहा जाता है कि झाला अज्जा का सर युद्ध करते हुए कट गया था, फिर भी झाला अज्जा का धड़ अंत तक युद्ध करता रहा । राज राणा झाला अज्जा जी, झाला मानसिंह (राजराणा बीदाजी) के दादाजी (दादोसा) थे, झाला मानसिंह ने हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप जब घायल हो गए थे तब महाराणा प्रताप की जगह लेकर, मेवाड़ का राजकीय चिन्ह धारण कर मेवाड़ी सेना का नेतृत्व किया था और वीरतापूर्वक हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा था और अपने प्राणों का बलिदान दिया था ।
इस शूरवीर योद्धा की वीरता को सादर नमन 🙏🚩🚩
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