History of Tanwar Rajputs
तंवर/तोमर राजपूत शाखाओं का इतिहास - Tanwar\Tomar Rajput Bracnhes History
History of Tanwar\Tomar Rajput Branches |
तंवर/तोमर राजपूत शाखाओं का इतिहास
1). जावला तंवर
तंवरों के आदि पुरुष तुंगपाल अथवा तोमरपाल के वंशज, राजा जावल के वंशज जावला तंवर कहलाते हैं। जावला तंवर विशेष रूप से राजस्थान के जैसलमेर, सीकर, झुंझनूं जिलों में तथा हरियाणा में है।
2). रूणेचा तंवर - दिल्ली के शासक अनंगपाल द्वितीय के पुत्र ऊमजी के छठें वंशज अजमालजी के पुत्र रामदेव व वीरमदेवजी थे। रामदेवजी राजस्थान के पांच लोक देवताओं में रामसापीर के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्होंने जैसलेमर क्षेत्र के रूणेचा गांव में समाधि ली थी। इन दोनों भाइयों के वंशज रूणेचा गांव के कारण रूणेचा तंवर कहलाते है। इनकी आबादी जैसलमेर क्षेत्र में है।
3). बत्तीसी के तंवर :- पाटन के राजा भोपाल के पुत्र आसलजी के वंशज आसलजी के तंवर कहलाते है। आसलजी के पुत्र बहादुरजी हुए। बत्तीसी के तंवरों की बही अनुसार पाटन राजा बहादुर के आठ रानियों के 32 पुत्र थे। इन पुत्रों के बत्तीस गांव होने के कारण ये बत्तीसी के तंवर कहलाते हैं। इन बत्तीस पुत्रों में बड़े पुत्र पृथ्वीराज को पाटन मिला, अन्य पुत्रों में रणसी को डोकण, सोढजी को जीलो, भोमा, सुरजन व धामदेव को मांवड़ा, आरेड़जी को भादवाड़ी. धीरसिंह को केलू, सीहोजी को गांवड़ी, झूभा को भूदोली, धीरसिंह को टोडा, गणेश्वर व कोण्डला, धागलजी को चीपलाटा व घाटा, मैलराज को मेड़ व बैराठ, अगैराज को जखाड़ा, आशादित को नीमोद, भीकमराय को बुचारा, तेजसिंह को कूण्डी, दूदाजी को सिरोही, नानकदास को नानकबास, मेडराज को इमलोहा, अजन को अजमेरी व रामपुरिया, गोविन्दजी को मौखूता, पीथोजी को प्रीतमपुरी, जड़सी को झाड़ली, गजसिंह को खिरोटी, हालोजी को चुड़ला, दुर्जन व बालोजी को मण्डोली गांव मिले थे।
4). आसलजी के तंवरः- पाटन राणा लाखन के पुत्र कंवल जी के चार पुत्र उदोजी, आसलजी, किलोरजी व फतूजी थे। आसलजी को पाटन की गद्दी मिली। इनके वंशज आसलजी के तंवर कहलाते हैं। आसलजी के वंशधरों के पाटन ठिकाने के अतिरिक्त फागणवास, ऊकन, पाहन, नोराण, दौलतपुरा, जाटावास, टोडा आदि गांव थे।
5). उदोजी के तंवर :- पाटनराव आसलजी के बड़े भाई उदोजी के वंशज उदोजी के तंवर कहलाते है। यह त्यागी पुरुष थे। आसलजी की माता की इच्छा आसलजी को गद्दी दिलाने की थी। उदोजी ने अपनी सौतेली मां की इच्छा पूर्ति के लिए पाटन की गद्दी छोड़ दी। उदोजी के एक पुत्र भंवरपाल थे। भंवरपाल के पुत्र लाखा के पुत्र डूंगरसिंह रायमल शेखावत, अमरसर व हिन्दाल के बीच हुए 1590 के युद्ध में काम आये थे। पाटनराव कंवलजी के पुत्र भीमराज ने बिहारीलाल का मंदिर, जोगेश्वर, राजेश्वर, बालेश्वर, टपकेश्वर, बागेश्वर आदि स्थानों की स्थापना की। इनके पुत्र भगवानदास प्रसिद्ध सन्त हुए जिनका देवस्थान चीपलाटा में है। इनकी बहिन शेखाजी की रानी व रतनाजी की मां थी। रतनाजी द्वारा राज्य विस्तार के समय बनेटी गांव के पास मामा-भानजे का युद्ध हुआ था। इसमें रतनाजी मारे गये थे। भगवानदास की छतरी बनेटी के पास है। पाटनराव कंवलजी के पुत्र व उदोजी के भाई जयंतसिंह ने गणेश्वर कुण्ड का जीर्णोद्धार करवाया था। जिसका शिलालेख कुण्ड की दीवार पर लगा हुआ है। उदोजी के तंवरों के भगेगा, भगोट, बुचारा, प्रथमपुरी, माही गावड़ी, गणेश्वर, मण्डोली, मांवड़ा, नीमकाथाना, महावा, हीरावली, बलराम की ढाणी, राणासर, कोटड़ा, गोविन्दपुरा आदि गांव थे।
6). परसरामजी के तंवर :- पाटन शासक कपूरजी के पुत्र अखैजी के पौत्र परसरामजी के वंशज परसरामजी के तंवर कहलाते है। तोरावाटी में हंसामपुर, सुन्दरपुर, ढाढा, कल्याणपुर, पुरूषोत्तमपुरा, पवाना, नांगल, चौधरी, सूरा की ढाणी आदि गांवों में इनका निवास हैं।
7). किलोड़जी के तंवर अथवा बाईसी के तंवर :- अनंगपाल (दिल्ली) के बाद क्रमशः शालिवाहन, निहाल, दोढ, पोपट, पीपलराज, कंवरसी, महीपाल व भोपाल, पाटन के राजा हुए। भोपाल के पुत्र किलोड़जी के वंशज किलोड़जी के तंवर कहलाते हैं। किलोड़जी के प्रमाड व उसके पुत्र उदयराम के ब्रह्मादास, नागराज, चौडालराज, गोविन्द, सोढ़, कालू व मेहराज थे। कालू निसंतान थे। शेष पुत्रों के पहले बाईस गांव थे। इसलिये यह बाईसी के तंवर भी कहलाते है। बाईसी के तंवरों के दांतिल, कुजीता, महरमपुर, जिणगोर, भालोजी, पाथरेडी, भैसलाना, पवाला, राजपूताना, बेरी, बनेटी, केशवानी, चेचिका, खडब, तिहाड़, बनार, पंचाणी, खेड़ा, नारहेड़ा, सरूण्ड, चांदवास, भोजवास, किरपुरा, फतहपुर, जगदीशपुरा, अहीरोंवाला गांव इन्हीं तंवरों के हैं। भालोजी गांव के तंवर बाद में मिर्जा मुसलमान बन गये और सोढ के प्रपौत्र नाहरसिंह ने नारहेड़ा बसाया था। नारहेड़ा में विशनसिंह ने वि. 1774 में गोगामेड़ी बसाया तथा गोपालसिंह की धर्मपत्नि उम्दा कंवर ने 1674 में शिवालय तथा धर्मशाला बनवाई थी। इनके चौथे पुत्र धनसिंह नाथ बन गया और समाधि ली। इनके वंशज योगी हो गये। फतहपुरा व जगदीशपुरा के तंवर अहिर बन गए।
8). कर्णेजी के तंवर अथवा चौबीसी के तंवर :- अनंगपाल दिल्ली के बाद क्रमश: शालिवाहन, निहाल, दोढ, पोपटराज, पीपलराज, कंवरसी, महीपाल व भोपाल हुए। पाटन शासक भोपाल के पुत्र आसलजी पाटन की गद्दी पर बैठे। दूसरे पुत्र किलोड़जी के वंशज किलोड़जी के तंवर कहलाये तथा तीसरे पुत्र पालनसी को जागीर में पानेड़ा का ठिकाना मिला। पानेड़ा से उठकर पालनसी के वंशज कर्णोजी बडबर में चले गये। इन्हीं कर्णोजी व उनके पुत्र तथा पौत्रों का पठानों के साथ संघर्ष की बात कही जाती है इससे अनुमान होता है कि यह समय बहलोल लोदी के समय होने चाहिए क्योंकि पठान इसी समय इधर आये थे। शेरशाह का दादा इब्राहीम अन्य अफगानों के साथ नारनौल क्षेत्र में आ चुका था और यूनसखां पठान नरहड़ पर 1515 के करीब अधिकार कर चुका था।
कर्णोजी के उग्रसेनजी, लादूजी, भरतजी व स्यालूजी हुए। इन चारों भाइयों के चार पानों की स्थापना हुई। हापोजी के पुत्र कुम्भाजी बुहाना गये और पुराने बुहाने के स्थान पर नया बुहाना बसाया। कर्णोजी के वंशजों के चौबीस गांव थे अतः ये चौबीसी के तंवर कहलाते है। ये चौबीस गांव है- बडबर, बुहाना, शिमला, नरांत, आसलवास, धूलवा, रायली, ढाणी सम्पतसिंह, गादली, नृन्हिया, निम्बास, बेरला, कासणी, लोटिया, फतेहपुरा, काकोड़ा, चौराड़ी, अगवाण, बालजी, बुढनपुरा, ढोढवाल, लाम्बी, अडीचो (वर्तमान सूरजगढ़) कांजला व धिगड़िया। इनमें शिमला के तंवर अहीर हो गये।
9). ग्वालेरा तंवर :- अनंगपाल द्वितीय के पुत्र तंवरपाल के वंशज दिल्ली छुटने के बाद पूर्व की तरफ चले गये। वहां वीरसिंह तंवर ऐसाह में रहते थे। वहां से उन्होंने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। वीरसिंह के वंशजों ने ग्वालियर पर कई पीढ़ियों शासन किया। ग्वालियर से निकास के कारण ये ग्वालेरा तंवर कहलाये। बीकानेर के तंवरों के सभी ठिकाने इन्हीं तंवरों के थे तथा मध्य प्रदेश में तंवरधार क्षेत्र में रहने वाले तंवर ग्वालियर से ही निकले हुए है।
10). जाटू तंवर:- जाटू तंवर राजपूत वंश राजा अनंगपाल द्वितीय के पौत्र व राजा शालीवाहन तंवर के पुत्र राव जैरथ जी जिन्हे जाटू जी कहा जाता था उनके वंशज हैं। राव जाटू के साथ उनके भाई रघु व अनंगपाल तंवर प्रथम के पुत्र सतरौला का कुटुंब आज हरियाणा के रोहतक , महेंद्रगढ़ , हिसार, कैथल , कुरुक्षेत्र और खासकर भिवानी में वास करता है। एक समय में इनके राज्य के अधीन लगभग 1440 गाँव थे। आज जाटू तंवरों के चौरासी गाँव भिवानी और आस पास के जिलों में वास करती है। पूर्व जनरल वीके सिंह भी तंवरों की इसी शाखा से है। भिवानी शहर की स्थापना भी इन्ही तंवरों ने की।
इन तीनो तंवरो के वंशजों को अपनी जागीरें बढ़ने के अवसर मिले , जिनमे जाटू के वंशज काफी फैले और उम्र सिंह ने तोशाम का इलाका कब्जे में ले लिया। जाटू तंवरों के सिवानी वाले वंशजों को रईस कहा जाता था और तलवंडी में बसे वंशजों को राणा कहा जाता था। जाटू तंवरों में नोपसिंह जाटू बड़े वीर योद्धा हुए थे, एक बार अमरसर के राव शेखा ने चरखी व भिवानी आदि तंवरों के इलाकों पर कब्जा कर लिया था तब नोपसिंह जाटू तंवर ने बड़ी वीरता से राव शेखा का मुकाबला किया और अंत में शेखाजी को युद्ध क्षेत्र से भागना पड़ा। इसी समय के लगभग जाटू तंवर सिवाणी पर भी शासन कर रहे थे। उन दिनों बीका और जाटों का संघर्ष चल रहा था तब पाण्डु और उसके जाट साथी बीका के साथ थे। अन्य जाट नरसिंह जाटू तंवर को बीकाजी के विरुद्ध चढ़ा लाये। सीधमुख के पास ढाका नामक स्थान पर बीका व कान्धल के साथ नरसिंह जाटू का युद्ध हुआ। इस युद्ध में नरसिंह जाटू ने वीरता दिखाई परन्तु अंत में मारे गये। इसी युद्ध में किशोरजी जाटू तंवर भी मारे गये थे।
11). जंघारा तंवर :- जंघारा तंवर तंवरों में सबसे लड़ाकू शाख मानी जाती है। जंघारा शब्द ही जंग व अहारा शब्द को जोड़ कर बना है जिसका अर्थ है जो वंश जंग के लिए भूखा हो। जंघारा तंवरों की वंशावली अनंगपाल के पौत्र राव जगपाल से होती है। यह तंवर इन्दौरिया तंवरो के भाई है। दिल्ली में चौहानो के कब्जे के बाद जंघारा तंवर तंवरों की मुख्य शाखा से अलग होकर रोहिलखण्ड के इलाके की ओर राजकुमार धापू धाम के नेतृत्व में कूच कर गए। जंघारा राजपूतों ने बरेली व उसके आस पास के इलाके से चौदवीं शताब्दी में ग्वाल अहीरों व कठेरिया राजपूतों को युद्ध में हरा कर यहां से बाहर निकाला। इन्होने रूहेला पठानों को भी कभी चैन से नहीं बैठने दिया , जंघारा राजपूतो की बहादुरी व लड़ाकूपन को देखते हुए ब्रिटिश काल में इनकी भर्ती सेना में ऊँचे ओहदों पर की जाती थी।
12). पठानिया तंवर :-
पठानिया तंवर, राजा अनंगपाल तंवर के अनुज राजा जैतपाल के वंशज है जिन्होंने उत्तर भारत में धमेरी नाम के राज्य की स्थापना की और पठानकोट नामक शहर बसाया। धमेरी राज्य का नाम बाद में जा कर नूरपुर पड़ा। यह वंश 1849 तक विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध अपने संघर्षों के लिए जाना जाता है। सन् 1849 में नूरपुर अंग्रेजो के अधीन हो गया। इस वंश के राजा राम सिंह पठानिया अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी वीरता के लिए विख्यात हैं,यह वंश इतना बहादुर व झुझारू है के आजादी के बाद भी पठानिया राजपूतों ने 3 महावीर चक्र प्राप्त किये। आज पठानिया राजपूत उत्तर पंजाब व हिमाचल में फैले हुए है।
13). जंजुआ तंवर वंश :-
जंजुआ वंश भी तंवर राजपूतों की तरह अर्जुन के वंशज माने जाते है। जंजुआ राजपूतों की उत्पत्ति व नाम अर्जुन के वंशज राजा जनमेजय से मानी जाती है जिनके ऊपर इनके वंश का नाम पड़ा। जंजुआ वंश तंवर वंश के भाई के रूप में देखा जाता है।जंजुआ राजपूतों के राज्य पूर्वी पाकिस्तान के इलाके में रहे है। ज्यादातर जंजुआ राजपूतों की खाप आज के पाकिस्तान में पायी जाती है जो मुस्लिम बन चुके है। कुछ जंजुआ राजपूतो के गाँव आज भी पंजाब में मौजूद है और वो हिन्दू राजपूत है। जंजुआ एक बहुत ही झुझारू व बहादुर वंश माना जाता है। पाकिस्तान के कई बड़े आर्मी जनरल जंजुआ राजपूत हैं, अंग्रेजो ने भी जंजुआ राजपूतो को पंजाब की सबसे लड़ाकू कौम बताया था। कबूल का प्रसिद्ध शाही वंश भी जंजुआ राजपूत वंश ही माना जाता है, जिन्होंने गजनवी से लम्बे समय तक संघर्ष किया था। यही नहीं इनके वंशज वीर पोरस को भी अपना पूर्वज मानते हैं जिन्होंने सिकन्दर को भी हरा दिया था।
14). जर्राल तंवर वंश :-
ये भी तंवर वंश की शाखा हैं, इन्होने तराइन के दोनों युद्धों में प्रथ्वीराज चौहान के साथ मिलकर गौरी का मुकाबला किया था, इसके बाद किसी कारणवश इस्लाम स्वीकार कर लिया। मध्य काल में इनका राज्य हरियाणा के कलानौर, जम्मू कश्मीर के राजौरी में था। इन्होने पठानों,सिखों,ब्रिटिशों और डोगरो से खूब लड़ाई लड़ी और कभी भी आसानी से किसी के काबू नहीं आये। आज इनकी आबादी अधिकतर जम्मू कश्मीर और पाकिस्तान में मिलती है।
15). बेरुआर वंश :-
बेरुआर वंश तंवर वंश की ही एक शाखा है जिसने पूर्वी उत्तरप्रदेश के बलिया व मुज़्ज़फ़्फ़रपुर जिले पर राज किया। भाटों के अनुसार पूर्वी उत्तर प्रदेश में बेरुर नाम की जन जाती को पराजय कर बेरुआरी तंवरों ने राज्य स्थापित किया जिस कारण इनका नाम बेरुआर वंश पड़ा। बेरुआर वंश के कई गाँव आज बिहार के मिथिलांचल इलाके, फ़ैजाबाद, बलिया, गाजीपुर, बनारस, छपरा आदि जिलो में पाए जाते है। यह वंश पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार सीमा पर सबसे शक्तिशाली राजपूत वंशो में एक है।
16). इन्दौरिया तंवर:-
इन्दौरिया तंवर सम्राट अनंगपाल तोमर के पुत्र इंदुपाल के वंशज है। इन्दौरिया तंवरों के ठिकाने आज झाँसी, दतिया, धौलपुर आदि में पाए जाते है। दिल्ली के गौरी द्वारा ध्वस्त हो जाने के बाद यह शाख भी इन इलाकों में आ बसी।
17). इन्दा तंवर :-
यह तंवर आज के मध्य प्रदेश के ग्वालियर के आस पास के इलाके में बसी हुई है। इस खाप को लडूवा तंवर भी कहते है।
18). बिलदारिया तंवर :-
राजा बंसोली के वंशज भागपाल ने बीदासर में राज्य स्थापित किया। बीदासर से जो तंवर निकले वे तंवर बिलदारिया कहलाये। इनके गाँव उत्तर प्रदेश के कानपुर, बलिया, उन्नाव आदि जिलों में है।
19). खाती तंवर :-
यह तंवर गढ़वाल के खात्मस्यु के अधिकारी थे। इससे पहले इनका निकास आगरा मुरैना के तोमरधार से माना गया है। आज यह शाख गढ़वाल में बसती है।
20). सतरावला तंवर:-
अंगपाल के पुत्र सतरौल के वंशज सतरावला तंवर कहलाते हैं। भिवानी हरियाणा के आस पास रहते है।
21). सोम वंश:-
सम्राट अनंगपाल उर्फ़ जावल के पुत्र सोम के वंशज। इन्हे सुमाल भी कहा जाता है। कुछ लोग इन्हें पांडू पुत्र भीम का वंश भी मानते हैं। ईस्ट यूपी के सोमवंशी राजपूत इनसे अलग हैं। सुमाल आज भी दिल्ली के रिठाला गाँव के मूल निवासी है। सुमाल रिठाला के आस पास के गाँवो के अलावा उत्तर प्रदेश के मुज़्ज़फरनगर व मेरठ के 24 गाँवो में पाए जाते है। यहाँ इन्हे सोम कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के मशहूर भाजपा नेता संगीत सोम इसी वंश से है।
22). कोड्यां तंवर :-
जावल के पुत्र पर ही इस खाप का नाम पड़ा। आज राजस्थान के सीकर जिले में डाबला के आस पास इनके गाँव पड़ते है।
22). निहाल तंवर :-
ये भी दिल्ली पति अनंगपाल के वंश से है आज मध्यप्रदेश में पाए जाते है।
23). सेलेरिया तंवर :-
यह भी दिल्ली पति राजा जावल के वंश से है। इन्हे सुनियार भी कहा जाता है ये मध्य प्रदेश के विदिशा में बस्ते है।
24). घोड़ेवा तंवर :-
नूरपुर हिमाचल के तंवर घोड़ेवा शासक कहलाए।
25). तिलोता तंवर :-
बिहार के आरा शाहबाद भोजपुर और यूपी के झाँसी जालौन जिले में निवास करते है।
26). जनवार राजपूत:-
उत्तर प्रदेश के बलरामपुर गंगवाल ऑइल प्रयागपुर इनके ठिकाने है। जनवार राजपूत झाँसी दतिया और बुंदेलखंड में भी पाए जाते है. जनवार तंवरों की शाखा के बजाये भाई बंध माने जाते है जो राजा तुंगपाल से पहले इस वंश से अलग हो गए।
27). कटियार तंवर:-
धर्मपुर राज्य जिला हरदोई उत्तर प्रदेश कटियार तंवर राजपूतों का है।
28). पालीवार तंवर:-
उत्तरप्रदेश के गोरखपुर व फैज़ाबाद जिलो में इनके गाँव है।
29). द्वार तंवर :-
उत्तर प्रदेश के जालौन, झाँसी व हमीरपुर जिलों में पाए जाते है।
30). जरोलिया तंवर:-
उत्तर प्रदेश के बुलंद शहर के आस पास के तंवर जरोलिया कह लाते है। कुछ जगह इन्हें गौड़ वंश की शाखा भी लिखा है।
31). रघु तंवर :-
रघु तंवर जाटू तंवर के भाई माने जाते है और भिवानी के आस पास आज बसे हुए है।
मराठा क्षत्रियों में तंवर वंश:-
मराठा तंवर मराठा तौर ठाकुर नाम से जाना जाता है। तौर ठाकुर के मराठवाडा प्रांत मे गोदावरी नदी के तट पर 22 गाँव है। इस प्रांत को गंगथडी भी कहा जाता है। इसके अलावा मराठो में तावडे और शिर्के भी तंवर वंशी हैं।
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